तुम्हारी आँखें

तेरे दीदार से उपजी बेफ़िक्री के बाद,
हम नहीं देखते कि लोग क्या देखते हैं।
                                                 - नागेश
ये पंक्तियाँ उतनी ही सार्थक होती हैं जब तुम्हें अपने नज़दीक पाता हूँ मैं, जितनी कि इस दुनिया में जीवन की हकीक़त। मुसलसल चल रहे कितने ही ख़यालों और चिंताओं का सफ़र एक पल में ख़त्म हो जाता है, जब तुम्हें अपनी ओर आते हुए देखता हूँ मैं। जितना कुछ भी लिखा या पढ़ा गया है इश्क़ की इबादत में, या तुम्हारी तारीफ़ों में उसे एक दिन उन्हीं कागज़ों में चूर होकर मिट जाना है। जो कसीदे पढ़े या गढ़े गए दिलों की ख़्वाहिशों पर वे भी एक दिन बूढ़ाकर शमशान का रूख़ करना चाहेंगे। जब तुम पास होती हो तो मेरी बातें तुमसे नहीं होती, तुम्हारे जिस्म का हर क़तरा बतियाने पर उतारू हो जाता है। इश्क़ एक किताब है जिसे मैं अपने सवालों के जवाब न मिलने की चाहत लिए पढ़ता हूँ। तुम्हारे काँपते हाथों से तुम्हारे लिखे को पढ़ना तुमने मुझे छू कर उतना ही सरल और सहज कर दिया जितना कि एक दो साल के बच्चे के लिए 'माँ' शब्द को कहना हो जाता है।
         ख़ामोशी की उम्र कितनी है यह आज तक कोई जान नहीं पाया, शायद ये ब्रम्हांड बनने के पूर्व से ही अस्तित्व में है। चाँद की काली रातें खामोशी को परिभाषित करती सी प्रतीत होती है। मैं किसी चाँदनी रात से पनपते अँधेरे में तुम्हारे साथ बैठकर अपनी हर बात को अधूरा छोड़ना चाहता हूँ ताकि तुम्हारी ख़ामोशी उन्हें पूर्णता दे सके। तुमसे दूर चले आना, किसी छोटी मुलाक़ात के बाद मुझे फिर मिलने की उम्मीद का बीज बोने जैसा लगता है। मैं चाहूँगा किसी दिन कि तुम पर लिखा गया सब कुछ मिट जाए और तुम सुनो उन ख़ामोशियों को जो मेरी सारी बातें तुम तक पहुँचाएगी और मैं देखता रहूँगा तुम्हारी मासूमियत से लबरेज़ आँखों को, जिन्हें तुमने उस तरह से नहीं देखा होगा कभी, जिस नज़र को मैंने पहुंचते देखा है तुम तक हमारी हर मुलाक़ात में। तुम सुनना खामोशियाँ, मैं देखूँगा तुम्हारी आँखें; तुम जानती नहीं, आँखें बहुत शोर करती है तुम्हारी।
                                                            - कमलेश

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