ज़िंदगी
मैंने देखा एकटक आसमान को,
तो एक सितारा उतरकर मेरे साथ चलने लगा।
रास्ते में मिल गई थी कुछ परछाईयाँ,
ठहरा वहाँ तो वो रिश्ते बनकर साथ आ गईं।
पलकों पर रहते थे कुछ जज़्बात हर पल,
अब वो छूने पर गिरने लग जाया करते हैं।
हाथ ढूँढ रहे हैं किसी की हकीक़त को,
जिसके पीछे जाने पर वो ख़्वाब पाते हैं।
रखे हुए हैं कुछ ख़त किताबों के बीच,
जिन्हें इंतज़ार है अपने पतों पर जाने का।
ज़िन्दगी से आख़िरकार मुलाक़ात हुई कल,
अब मैं आईने के सामने खड़ा मुस्कुरा रहा हूँ।
एक पेड़ खड़ा हुआ था बरसों से बाग में,
कल एक बच्चे ने जाकर उसको गले लगा लिया।
- कमलेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें