प्रेम फलित होता ही तब जब जीत कर रह जाए हारा
प्रेम के वशीभूत होकर लिखता जा रहा है वह निरंतर, है घिरा सब ओर से भीड़ भाव और राग से, खोता जा रहा नित् ही पर हर क्षण अजर एकांत में: तुम रुको क्षण भर देखो दीखता क्या तुम्हें पन्नों ...
जिंदगी की राहों से गुज़रते हुए अपने कुछ अनुभव साथ लिए चल रहा हूँ, यहाँ मेरे अन्तर्मन से उपजे प्रेम, समाज, जिंदगी, देश आदि के बारे में विचारों को आप पाएंगे ।