जब तुम्हारी याद आती है...
भूख,प्यास, भावनाएँ,
सब भूल जाता हूँ,
और
नींद, जागना, सपने,
ख्यालों को भी भूल जाता हूँ,
जब मुझे तुम्हारी याद आती है...
साँसे रहती हैं वहीं की वहीं,
कदम ठहर जाते हैं
सड़कों पर चलते हुए,
रूक जाता हूँ मैं ख़ुद को लिखते हुए
मौन हो जाता हूँ किसी गीत को गाते,
जब तुम्हारी याद आती है मुझे...
निकलता हूँ जब अपना चोला उतारकर
जंगल की राह पर,
देखता हूँ उसके दरख्त और सब्ज़ जमीं को
तब पंछियों के चहचहाने में
ढलते सूरज की रोशनी में,
एक अक्स दिखाई पड़ता है वहाँ;
जब मुझे तुम्हारी याद आती है...
शाम के ढलते साये में
जब टिका लेता हूँ अपनी पीठ
उम्मीदों के घर की छत पर बनी मुंडेर से,
टिमटिमाता है रात का पहला तारा
आसमान के किसी कोने में,
निकल आता है चाँद अचानक से,
और बदल जाता है मौसम मेरे हालातों का
जब तुम्हारी याद आती है मुझे...
- कमलेश
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