दुनिया की जरूरतें
आया तो उड़कर एक ही पत्थर था,
लेकिन उसने दो आंखों में अँधेरा
और साथ की दस नज़रों में खून भर दिया।
रास्ते तो लगे ही थे
दस साल की पीठ पर टंगे बैग की हिफाज़त में,
लेकिन अभी अभी
इंसान से जानवर बने हाथों ने:
उन रास्तों की ज़िंदगी
और दस साल की साँसों का दम घोंट दिया।
बहुत सोचा था एक दिल ने
कि ख़्वाहिशें बाद उसके कौन पूरी करेगा!
लेकिन उसकी आवाज़
और आँखों की चमक नहीं जा पाई दहलीज तक:
चार आँखों के ख़्वाबों ने,
दुनिया से दो पलकों के दिये बुझा दिए।
मैं रुक जाता हूँ
दो नन्ही नज़रों के सवालों पर,
मैं सहम जाया करता हूँ
हरियाली से आती आवाज़ के कारण,
दुनिया की दो ज़रूरतें ही
बाकी सारी ख़्वाहिशों का ज़रिया है
यह एक मित्र की वह पंक्ति पढ़कर जाना:
जिसमें लिखा है कि
"शिक्षित बच्चे और पेड़
इस दुनिया की सबसे बड़ी ज़रूरत है।"
- कमलेश
शुक्रिया दादा (नागेश्वर पांचाल)❤❤
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