हर रोज़ रात को सोने जाते वक़्त जब बिस्तर का रुख करता हूँ, तब मेरी नज़र खिड़की की जाली के पार होती हुई आसमान में टिमटिमाते एक पीले तारे पर जाकर ठहर जाती है, शायद तुम भी उस वक़्त उस तारे को देख रही होती हो ! और इस तरह हमारी नज़रें मिल जाती है । रात, Source - Hamipara.com नज़रों की इस बातचीत और उस पीले तारे को निहारते हुए गुज़र जाती है; भोर के वक़्त उस विलुप्त होते तारे को देख, ठिठक जाता हूँ मैं, तब तुम भी तो उगता हुआ सूरज देख रही होती हो । रात भर की खलिश मिटाने अलसुबह जब तुम बना लेती हो एक चाय, ठीक उसी वक़्त मैं भी पी रहा होता हूँ वो ही चाय ! दिन को, तुम्हारी यादों की बारिश में, एक एक कर भिगो देता हूँ मैं ख्यालों के सारे पुलिंदे, तब शायद तुम भी इसी तरह भीगकर, मयस्सर कर लेती हो मेरे एहसास । किसी आलस भरी दोपहर जब काम की उहापोह के बीच, तुम खीझ उठती हो किसी पर, झल्ला उठता हूँ मैं भी, उसी वक़्त पास खड़े किसी शख्स पर लेकिन बेवजह ! थकान से लबरेज़ जब मैं, जा बैठता हूँ खुली छत पर शाम के साए में, तब गुजिस्ता लम्हों की फेहरिस्त पढ़कर एक आंसू छलक जाता ...