क्यों

अग्नि परीक्षा की ज्वाला में
जलती हर बार सीता ही क्यों,
देती है स्वयं जलकर
अपने होने का प्रमाण क्यों ।

भय के समाज से
तजता है राम उसको,
कितने ही वचनों को तोड़
रघुकुल की रीति निभाता वो,
अपने सतीत्व का प्रमाण देती
हो जाती कलंकिनी है स्त्री,
त्याग कर के मानवता का
हो जाता मर्यादा पुरुषोत्तम राम,
टूट जाता है राम भी
समाज की आंधी में क्यों,
मांगता है एक सती से
उसके होने का प्रमाण क्यों ।

फिर मिटाने को वही
अपवाद कपटी समाज का,
हो निर्ल्लज देता आदेश
एक बार फिर प्रमाण का,
सम्मुख खड़े उसके सूत
प्रत्यक्ष बनकर खुद गवाह,
पर लांघ दी उसने मर्यादा
कहलाने को पुरुषोत्तम राम,
चढ़ गई भेंट सीता जमीं को
दे ना पाया राम कोई प्रमाण क्यों,
दिलाने सम्मान सीता को
झुक ना पाया उस दिन राम क्यों ।
                                -- कमलेश

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