सुनना

हर कहानी की एक आंख होती है,
काश हर कहानी के दो कान हो ।
                                      - नागेश
                    हर कहानी लिखित रूप लेने से पहले सुनी जाती है स्वयं लेखक के द्वारा, जब उसके अनुभव यह कहानी कह रहे होते हैं तब लेखक अपने विचारों के प्रवाह को थाम कर इस कहन का श्रोता बनता है । यह पंक्तियां भी केवल लिखकर पढ़ने के लिए नहीं छोड़ दी गई, जिसे छोड़ा गया है लेखक के द्वारा वो है एक अहम सवाल जिसके बारे में एक बड़ा तबका शायद सोचना ही भूल गया । सुनना बातचीत का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है जितना कि कहना, जब कोई बात कही जाती है तब श्रोता को चाहिए कि वह उस हिस्से के साथ जोकि कहा जा रहा है, जो नहीं कहा गया उसे भी सुनने की पुरजोर कोशिश करे । जब बातचीत के आधुनिक साधन नहीं थे तब पूर्वजों ने अपने आप को श्रोता होने के लिए तैयार किया ताकि वे सारी कहानियां, जानकारियां और किस्से जो किसी भी टेप रिकॉर्डर में संग्रहीत नहीं है हम तक यथासंभव उसी रुप में पहुंचा पाए, उन्होंने अपना श्रोता होने का दायित्व निभाया क्योंकि उन्हें एक ही मौका मिला करता था या शायद बहुत ही सीमित । वे हमारी तरह भाग्यशाली नहीं थे कि एक बार में संदर्भ समझ ना पाए तो रिकॉर्डर  को दोबारा से चलाकर सुन सकें । रिकॉर्डर निसंदेह पूर्वजों की कमजोरियों का एक हल है, जब उन्होंने पाया कि सारे कामों की व्यस्तता के बीच महत्वपूर्ण बातों को किया जाना आवश्यक है तब एक बार फिर उन्होंने "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" इस कथन को सत्य किया । यह कथन हर नई कमी के साथ चरितार्थ होता जाता है । आज के समय में हमें दिन के अधिकतर हिस्से में ज्यादातर ऐसी ध्वनियां सुनाई देती है जिन पर हम सामान्यतः अपने ध्यान को देने की ज़रूरत नहीं समझते,लेकिन इसके उलट जब कोई वजनदार बात कानों तक पहुंचती है तो उस पर हमारा सारा ध्यान केंद्रित करने को हम प्रयासरत हो जाते हैं । सुनने की प्रक्रिया शुरू होती है स्वयं से, जब हम अपने विचारों की धाराओं को संतुलित कर उन्हें संयम प्रदान करते हैं तभी हममें कुछ अन्य सुनने की क्षमता पैदा हो पाती है । सुनना ना केवल दीवार पर सर टिकाकर बैठना है बल्कि यह वह गहन प्रक्रिया है जो आपको एक संयमित जीवन की ओर अग्रसर होने के लिए तैयार करती है, आप भी जब तक अच्छे श्रोता नहीं हो जाते तब तक अच्छे वक्ता नहीं हो सकते । सुनते समय वक्ता के साथ जुड़े हर पहलू को जानना पहचानना और आत्मसात करने की प्रक्रिया है सुनना ।
                                                     -- कमलेश
{नोट : शुक्रिया नागेश भाई एक बार फिर एक अहम सवाल पर केन्द्रित होने के लिए प्रेरित किया आपने ।}

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