दिल के खालीपन का इश्तेहार

दिल के खालीपन का इश्तेहार यूं लगा रखा है,
सारे शहर को उसकी अगुवानी में लगा रखा है ।

मुश्किलों से मुलाक़ात भी होती रहती है लेकिन,
अभी मैंने ध्यान अपना बस उनपे लगा रखा है ।

वो हैं कि बस ज़िद्दी बन कर बैठ गए ऐसे ही,
मैंने जबकि मेज़बानी में खुद को लगा रखा है ।

ख़्वाबों से निकलो और चले आओ दहलीज़ पे,
तुम्हारे इंतज़ार में सारा  मोहल्ला सजा रखा है ।

संभलों के वक़्त बहुत कम रह गया है अब तो,
तुमने क्या ये मज़हबों का झगड़ा लगा रखा है ।

उम्मीदों के सेहरे को मेरे माथे पर मत सजाओ,
खुद के अजीज़ ख़्वाबों को मैंने दफना रखा है ।

मौत चाह ले तो भी नहीं आ सकती मुझसे मिलने,
कामों की फ़ेहरिस्त में उसे आख़िर में लगा रखा है ।                                       
                                                      -- कमलेश

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