मैं वहीं हूँ


मैं वहीं हूँ,
जहाँ लेते हो तुम साँस
जहाँ उठकर देखी धूप तुमने,
हूँ वहीं उस छुअन में मैं।
जब जब चले तुम्हारे कदम धरा पर,
तब तब पाया है मैंने अपने पैरों में धूल को चिपके हुए;
हूँ वहीं उस जल मैं,
जिसे पिया है तुमने हर प्यास में;
मैं नहीं कहीं भी इस धरा पर,
वहीं हूँ जहाँ रखे हैं ख़्वाब तुम्हारे।

मैं हूँ हर उस पल और शख़्स में,
जहाँ तुम हँसे और
किया है प्रेम तुमने बंदिशों से परे;
मैं वहीं हूँ,
जहाँ लेते हो तुम साँस
जहाँ उठकर देखी धूप तुमने,
हूँ वहीं उस छुअन में मैं।
                              - कमलेश

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