वाकये, चुनाव और हम


1. यह यमुना है, हाँ जी इस देश के 100 करोड़ से ज्यादा लोगों की यमुना मईया, जिसका पानी अभी ऐसी हालत में है जिसको पीना तो दूर छू लेने भर से आपको चर्म रोग और स्किन कैंसर जैसी बीमारी हो सकती है। एक तरफ हम इसकी माँ मानकर पूजा करते हैं और उसी पूजा के अंत में इसमें बेतहाशा कूड़ा करकट डाल देते हैं, तो जी यही है क्या शास्त्रों में पूजा का विधान?  भारतीयों के कर्मों और प्रकाण्डों ने जितना नुकसान प्राकृतिक संसाधनों को पहुँचाया है उतना बाकी चीजों ने नहीं।
2. हाल ही में दिल्ली में SEE के 3 दिवसीय लोकार्पण समारोह में पिछले 5 सालों से उसके लिए अथक प्रयास कर रहे दलाई लामा और उनकी टीम दिल्ली में थी, जिन्हें समारोह की समाप्ति के बाद प्रदूषण से उपजे संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।
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3. दिसम्बर में एक टीबी के मरीज़ को दिल्ली के एक नामी अस्पताल से डॉक्टरों ने 1 महीने तक जानबूझकर छुट्टी नहीं दी, क्योंकि डॉक्टरों का कहना था कि वह मरीज़ अगर अस्पताल से बाहर गया तो उसकी जान जाने का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा, वजह दिल्ली का प्रदूषण।
ऐसे अनगिनत वाकये हैं जिन्हें अगर हम देखें तो रूह काँप जाएगी। प्रदूषण दिल्ली में रहने वालों के लिए पल पल की मौत है, हाल ही मैं आई एक ताजा रिपोर्ट के आंकड़े हैं कि 2017 में प्रदूषण से 12 लाख लोगों की जानें गई हैं केवल भारत में और दिल्ली में केवल 1 साल रहने भर से आपकी औसतन उम्र 20 महीने कम हो जाएगी इसकी संभावना बहुत अधिक है। हम हमारे जीवन के रोजमर्रा काजों में ख़ुद को कितना सजग रखते हैं और कितने सचेत होकर अपनी इच्छाओं/लालच की पूर्ति करते है! ये सवाल उतने ही ज्यादा अहम हैं जितनी कि ज़िन्दगी की कोई और दूसरी चीज।
चुनाव सिर पर हैं, एक तरफ पूरा देश फिर से राम मंदिर, 370, 35A और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के लिए आक्रोशित है लेकिन क्या हम इस बात के लिए गुस्सा हैं कि हमारे आने वाले बच्चे उस दुनिया में साँस भी नहीं ले पाएँगे, जो हम उनके लिए छोड़कर जाने वाले हैं! चुनावों के रंग में डूबे लोग एक बार खुद से ख़याल करें कि राम, 370 और 35A से उनकी ज़िंदगी सुधरेगी या प्रदूषण की रोकथाम या शिक्षा जैसे अन्य मुद्दों पर खुद को झोंकने से!
        दिल्ली, जहां मैं पिछले दो सालों से रह रहा हूँ और यह मेरे सामने हो रहे दूसरे चुनाव हैं। पहला दिल्ली नगर निगम के लिए और अब लोकसभा, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि दिल्ली में लड़ने वाली किसी भी पार्टी ने प्रदूषण को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया आख़िर क्यों? दिल्ली के रहनेवाले ज़रा सोचें इस बार वोट देने से पहले या अपने सांसद, विधायक, और पार्षद से मिलकर पूछें कि प्रदूषण और शिक्षा जैसे मुद्दों पर उनकी क्या योजना है!
आप की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए बहुत काम किया लेकिन प्रदूषण के सामने वह भी मूकदर्शक बनी बैठी है आख़िर कब तक हम अपने बच्चों को यह ज़हर भरी जिंदगी देते रहेंगे, इससे बेहतर है पीढ़ी को बढ़ने ही नहीं दिया जाए! वैसे भी अब तो बच्चे भी सवाल करने लगे हैं कि यह सब हमने क्यों किया!
  मार्च 2019 में लगभग 50 से ज्यादा देशों के बच्चों ने एक विश्वव्यापी आंदोलन केवल इस बात के लिए किया हम उन्हें कैसी शिक्षा, कैसी दुनिया और कैसी ज़िन्दगी दे रहे हैं! बच्चों का एक सवाल मेरे दिल में अभी भी उतना ही ताज़ा है जब वह पूछा गया था कि मौत का खेल रच रहे शिक्षकों और अभिभावकों को क्या हक़ है कि वह हमारी ज़िंदगी का संचालन करें? यह सवाल बहुत बड़ा है और गहरा भी।
      सोचें, अपनी ज़िंदगी के हर एक पल पर लिए गए फैसले के बारे में, आने वाले वक्त में होने वाले फैसले और ज़िन्दगी जीने के तरीके के बारे में। और इस चुनाव सवाल कीजिये अपने आप से, अपने साथियों से और खासकर चुनाव प्रत्याशी से कि प्रदूषण और नफ़रत भरी इस दुनिया में हम पक्के घर, 72000, उज्ज्वला योजना, राम मंदिर, 370, 35A और पूर्ण राज्य लेकर आख़िर करने क्या वाले हैं?
    महत्त्वपूर्ण है कि मामले की गंभीरता को समझा जाये और अपने कार्यों और जीवन शैली को बदला जाए, क्योंकि अब इस देश या दुनिया के लोगों के पास यह कहने का समय भी नहीं बचा है कि हमारे पास समय नहीं है।
      फ़ैसला कीजिये और बदलिए, अन्यथा परिणाम घातक होंगे। दुनिया को बचाना हमारे हाथों में है, हर एक हाथ में जो रोज सुबह अपना मुँह धोता है, खाना खाता है और अपनी ज़िंदगी जीने के जतन करता है।
                                                            - कमलेश

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