हमारा जीवन

वक़्त और मौत
मेरे विश्वास,
और तुम्हारे प्रेम को
इतना कमज़ोर कभी भी नहीं बना सकते
कि हम उठ न सकें,
मुक्त न कर सकें
किसी को उसके जीवन से,
जीवन की मुक्ति केवल
देह से रूठकर चले जाने में नहीं,
रूह को ढूंढकर एकाकार होने में भी है;

कोई क्षण
कितना भी गहरा क्यों न हो
वह
बीतने के लिए ही पैदा हुआ है,
यह ख़याल कितना छोटा है
कि ठहरकर
सब कुछ ही देख लिया जाए,
मैं 'गर ठहर गया
इस बहती हुई धार में तो,
लहरें मुझे बहाने की बजाय
उतार लेंगी उसी क्षण अपने अंतस में;
और मैं
मृत्यु सा होकर अदृश्य,
चल दूँगा बिना मंज़िल की राह पर।
वक़्त तुम्हारे क़रीब रहेगा
कुछ दिन सुस्ताने के लिए,
लेकिन
तुम तो चलने के लिए बनी हो,
तुम भी,
वक़्त को छोड़कर बढ़ जाओगी
किसी अनजानी राह की ओर!
                               - कमलेश

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गांव और देश का विकास

मुझे पसंद नहीं

सहमति और हम - भावनात्मक जीव