कविता २ (इंतज़ार)
छाई है ख़ामोशी इस कमरे में
जहाँ तुम छोड़ गए अपनी अनुपस्थिति,
मैं कर रहा हूँ अभी भी वो सारी बातें
जो हो रही थी उपस्थितियों के क्षणों में;
ढूँढ रहा है बिस्तर पर गिरा हुआ एक आँसू
कि उसे प्यार जताने वाला हाथ नदारद है,
खोज रही हैं घेरे में बैठी दो आँखें
कि उसकी बातें रखने वाले कंधे नहीं दिखते।
लौटना तुम
लौटूँगा मैं,
वक़्त नहीं ही लौटे तो बेहतर होगा;
इंतज़ार है आँखों को
इंतज़ार में हैं कुछ आँसू,
इंतज़ार में है दरवाजे के सामने वाला पीपल;
इंतज़ार में हो तुम, इंतज़ार में, मैं भी।
- कमलेश
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