किस्सा -१ -- अंतहीन यात्रा


ट्रेन के ब्रेक अचानक लगने से उसकी नींद खुली, शायद कहीं बियाबान में रुकी थी कोई जानवर रहा होगा. हो भी क्यूँ न! आजकल हर कोई बस जानवरों सा ही दीखता है और व्यवहार करता है. उसने उठकर अपनी घड़ी देखी, स्टेशन आने में अभी २० मिनट बचे थे. थोड़ी देर बगल में झाँकने के बाद उसे लगा कि उसका सिर दर्द से फटा जा रहा है, लेकिन उसे कोई उपाय नहीं सुझा; सूझता भी क्या उसे बस यात्रा के ख़त्म होने का इंतज़ार था, लेकिन यात्रा तो बस बगैर उसके एहसासों की परवाह किये चली जा रही है. कौन जाने, यह कब और कहाँ ख़त्म होगी!
- कमलेश 

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