इंसानियत


भावनाओं को समझना
किसी का हमदर्द होना
होते जुल्म को रोकना
हो सके तो मदद करना
परिभाषा है यही शायद
इक लफ्ज 'इंसानियत' की ।
 
दिखाई नही पड़ती आज
पहले जैसी कोई बात
मानव,मानव को मारे
अपनो ने दिए दर्द सारे
भावनाओ की कदर नही
मिलती जो दौलत कही
बनने चला है सिकंदर
अपनी रुह का कत्ल कर ।
रोती है वो मूर्तियाँ भी
मंदिर मजारों में जो है
के पत्थर होकर उनमे
लोगों को विश्वास जो है
जीती जागती यह आत्मा
बन गई है आततायी
करके विनाश इंसानो का
इंसानो की दुनिया बनाई ।
 
जिन्हे पुजा पूर्वजों ने
वो तो जानवर भी है
अपने स्वार्थ में इसको
उन मूकों की प्यास भी है
काँपती है रुह उनकी
जो हमसे ना कह पाते है
करके इन मासूमों पर जुल्म
खुद को इंसान् बतलाते है ।
खो गई है वो परिभाषा
आविष्कारों की आग में
ढह गया है वो इंसान
दौलत की इस बाढ़ में
इक आस की ज्योति पर
जलती है इस दिल में
लौटकर आएगा फिर वो
मानवता के मधुबन में ।
                    .....कमलेश.....


नोट : जानवरों की पुजा से गोवंश की ओर इशारा किया गया है ।

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