तुम

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गर्मी के भीषण तूफान् सी निडर,
बनकर के लिपट जाया करो तुम ।

रूख बदलती इन  हवाओं सी, 
फिर से पलटकर आया करो तुम ।

कुछ समझ बादलों से उधार लेकर,
वक्त बेवक़्त मिलने आया करो तुम ।

घनघोर काली घटाएँ बनकर के,
दिल के आँगन पर छाया करो तुम ।

कड़कती चमकती बिजलियों के जैसी,
कभी मुझ पर गिर जाया करो तुम ।

इन बारिशों की बूँदो जैसी निर्लज्ज,
होकर के मुझे छु लिया करो तुम ।

बाढ़ के उस बेकाबू पानी की तरह,
मेरे तन में फैल जाया करो तुम ।

अतिप्रिय-मनभावन सावन के जैसे,
मुझमे समाकर प्रेम किया करो तुम ।
                             
                                                                                 .....कमलेश.....

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