पैगाम


और बहुत दिन हुए कही कुछ हुआ नही,
क्या सियासत भी अब शर्माने लगी है ।

वो चीख, वो सिसकियां,वो पुकार
क्या उनकी आवाज भी दम तोड़ने लगी है ।

मेरे वतन के इन हालातों को देखकर भी,
क्या तुम लोगों में जरा हलचल होने लगी है ।

काट कर ले गए वो शीष हमारे बेटों का,
क्या इस पल भी तुम्हें नींद आने लगी है ।

देश की सरहद पर जवान शहीद हो रहे है,
क्या 56 इंच की छाती अब सिकुड़ने लगी है ।

                                     .....कमलेश.....

                

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