सीखना

 " अगर मुझे कोई पेड़ काटने के लिए छ: घंटे दिए जाएं तो पहले चार घंटे में, मैं अपना हथियार पैना करूंगा ।"

                                             - अब्राहम लिंकन
   
                 कोई भी विचार आपके दिमाग में आने से पहले यह तय नहीं करता कि आप सफल होंगे या नहीं, विचारों की इस प्रक्रिया में हमारा शामिल होना बहुत ज़रूरी होता है । हमारी पहली आवश्यकता यह है कि हम अपने विचारों को सुने और उनके अर्थ को सहज होकर खोजें । अर्थ खोजने की क्रिया में पहला पड़ाव आता है सीखने का, सीखना सतत दोहराव का एक परिणाम है । दोहराव के फलस्वरूप दो चीज़े उत्पन्न होती हैं, पहली होती है आदत और दूसरी सीखना । आदत बना लेने और सीख जाने में अंतर समझना जरूरी है क्योंकि अक्सर इन दो गुणों में संशय पैदा होने के आसार बने रहते हैं । एक उदाहरण से हम इसे आसानी से समझ सकते हैं जैसे कि किसी व्यक्ति ने दोहराव से सीखा कि सिटी कैसे बजाते हैं और उस गुण पर काबू पा लिया, वहीं दूसरे ने दोहराव से उसे आदत बना लिया । दोनों का फ़र्क बस उन्हें समझकर उपयोग करने में ही है ।
          सीखना अवलोकन करने और सुनने से आरंभ होता है, पहले पहल जब साल भर का बच्चा कुछ बोलता है या बोलने की कोशिश करता है तो वह अपने आसपास हो रही आवाज़ों पर ध्यान केंद्रित (अवलोकन) करता है, उन्हें सुनता है फिर बोलने की कोशिश करता है । यही प्रक्रिया हम पर भी लागू होती है किसी भी क्रिया को सीखने के लिए, लेकिन हम इसे जटिल बना देते हैं यह जानते हुए भी कि हम बचपन में सारी क्रियाओं का पहले अवलोकन करते थे फिर उसे करने की कोशिश और फिर दोहराव । सीखने का यह तरीका प्राकृतिक है । किसी क्रिया का अवलोकन और उस का दोहराव परिणाम स्वरूप आदत और सीखने को जन्म देते हैं लेकिन जब आकलन जुड़ता है तो वह आदत और सीखने को भिन्न बनाता है । किसी क्रिया को आदत बनाना है या सीखना है यह बात केवल व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं करती बल्कि उसके द्वारा अपनाए गए तरीकों और साधनों पर निर्भर करती है ।
           अपने विचारों को थामकर, मन को सीखने की प्रक्रिया में लगाएं तो यह प्रभावशाली साबित होता है बशर्ते आपने अपने विचारों को ठीक से सुना है तो । विचार आते ही उसे सफलता या असफलता के तराजू में ना रखें बल्कि उसके लिए ख़ुद को एक निर्धारित समय दें ताकि आप इस बात से संतुष्ट हो सके कि आप उस पर वाकई काम करना चाहते हैं या नहीं । किसी विचार को जमीनी स्तर पर उतारने से पहले उसे पर्याप्त समय देना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना काम को शुरू करने से पहले संसाधन जुटाना । विचारों को समय दें, उनके सारे पहलुओं को सुने, दोहराव की प्रक्रिया में शामिल हों और अंत में उसका आकलन करें, सीखने के लिए इतना ही उद्धम अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है । उपरोक्त पंक्ति जो अब्राहम ने मंत्र के रूप में कही है वो भी इसी बात को सार्थक करती है कि सीखने के पूर्व की तैयारियों को हमेशा पूरा रखें, बस घबराएं नहीं, कोशिश करें ।
      अंत में इतना ही कि हम सफलता और असफलता नाम की लालसाओं को त्यागकर सीखने की ओर अग्रसर होंगे तो एक बेहतर भविष्य का आलिंगन कर सकेंगे ।
                                                 -- कमलेश

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