मैं और तुम

वक़्त चल दिया है भागीरथी सा
मेरे दिल की गंगोत्री से,
नासमझ देखता नहीं पलटकर
नहीं तो जान जाता,
कैसे बिखरा था हिमालय
हजारों साल पहले
गंगा उद्गम के समय ।

कोशिशें कई हुई है
तेरे बिना जीने के लिए,
लेकिन सब नाकाम रही
अब ये तो जग ज़ाहिर है कि,
गंगा और हिमालय कभी भी
अलग नहीं किए जा सकते;
अब तुम ही बताओ
कैसे रहेगी गंगा हिमालय के बग़ैर,
और कौन ही जानेगा हिमालय को
गंगा से जुदा हो जाने के बाद ।

एक हरिद्वार है
जो वर्षों से जुटा है गंगा को
अंगीकार करने के लिए,
लेकिन प्रेम पाश ने हमारे
उसे हमेशा निष्फल ही रखा,
सारे प्रयास विफ़ल हो चूके
तब विष्णु ने तुमको बनाया,
मुझे पाश में बांधने के लिए
और कोई दो राय नहीं के,
वो पूरी तरह सफल हो गए ।

विचार करो कि किस प्रकार
सृष्टि की शक्तियों का उपयोग,
हम दोनों के लिए किया गया;
सारे हथकंडे, सारी माया
सृजनकर्ता ने अपना ली लेकिन,
वो इस बात को भूल गए के
'हिमालय और गंगा के बीच,
किसी भी हरिद्वार के लिए
कोई स्थान कभी था ही नहीं ।'
                                   -- कमलेश

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