जनता एक्सप्रेस
“यात्रीगण कृपया ध्यान दें इंदौर से चलकर
उज्जैन, भोपाल, ग्वालियर, आगरा के रास्ते जम्मूतवी को जाने वाली गाड़ी संख्या
12919,मालवा एक्सप्रेस, ग्वालियर स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 से चलने को तैयार है
धन्यवाद |” “ओये ट्रेन आ गई है, तू कहाँ है अब तक?” “बस आ रहा हूँ दो मिनट
में ” “चल ठीक है” अमन ने फ़ोन रखते हुए कहा और बोगी नंबर 7 को खोजकर बैग थामे
गेट पर खड़ा हो गया | सीट का नंबर उसे पता नहीं था इसलिए उसे मधुकेश का इंतज़ार करना
पड़ा, मधुकेश ट्रेन छूटने के ठीक बाद पहले बोगी नंबर 8 में चढ़ा और फिर उथल-पुथल
मचाते यात्रियों को चीरकर अमन तक पहुँच पाया | “कौनसी सीट है ?” अमन ने पूछा, “एक
मिनट मेसेज देखने दे |” “कोई तो काम रेडी रखा कर यार” “S-7 43 और 44” मधुकेश का जवाब हल्की आवाज़ में सुनाई पड़ा | कोई
भी काम रेडी ना रख पाना इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स की बड़ी कुशल प्रतिभा होती है,
खैर दोनों की बहस और खोजबीन का नतीजा ये निकला के दोनों अभागे इंजिनियर गलत ट्रेन
में चढ़ चूके थे, जिसका नाम तक उनको नहीं मालूम था | “अबे चूतिए, अब पता चला ज्यादा
होशियार बनता है जब तुझसे पूछा था कि मुझे कन्फर्म करके बता दे तब तो याद है कहके
फ़ोन काट दिया, ले अब ढूंढ तेरी 43 और 44 सीट |” अमन ने गलत ट्रेन में चढ़ जाने की
सारी भड़ास मधुकेश पर निकाल दी | असाइनमेंट, प्रैक्टिकल और जरुरी ट्रिप के लिए अगर
जिगरी यार कोई गलती कर बैठे तो गुस्सा कम गालियाँ ज्यादा जुबान पकड़ती है | “यार
वो सब छोड़ अब टेंशन यह है कि टीटी ना आ जाये, नहीं तो फालतू की भसड़ मचेगी |” मधुकेश अच्छी हवा खाने के बजाय खौफ़ खाते हुए
बुदबुदाया | “चल कुछ ना कुछ जुगाड़ कर लेंगे |” कहते हुए अमन कम्पार्टमेंट
के दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया ताकि उसे बाकि यात्रियों द्वारा बनाये हुए
अजीबो-ग़रीब माहौल से छुटकारा मिल सके | ट्रेन अपनी रफ़्तार से बढ़ती चली जा रही थी
और ठंडी से और ठंडी होती हवा एमपी से राजस्थान की सीमा में दाखिल हो चुकने का
पैग़ाम ला रही थी | दोनों ने पहले अपनी नज़रें बोगी की कुछ हॉट सीट्स ढूँढने के लिए
घुमाई लेकिन निराशा ही हाथ लगी, कुछ देर बतियाने के बाद निर्णय हुआ कि अगले स्टॉप
पर उतर कर वहाँ से दूसरी ट्रेन पकड़ ली जाए ताकि किसी भी परेशानी से फिर सामना ना
हो, जोकि महज उनका भ्रम था क्योंकि ट्रेन एक बार पटरी छोड़ दे लेकिन परेशानियाँ किसी
इंजिनियर का साथ मरने के बाद भी निभाती है |
ट्रेन को पागलों की तरह दोड़ते दोड़ते तक़रीबन एक
घंटा बीत चूका था लेकिन अगला स्टॉप शायद नाराज़ होकर उससे दूर भागता जा रहा था |
मधुकेश ने कान के पास से गुज़रती हवा की शिकायत करते हुए कहा “भाई, अगला स्टेशन बस
आने ही वाला है भगवान करे टीटी से बच जाएं |” “वो सब तो ठीक है लेकिन अगली ट्रेन कब मिलेगी
वहां से हमें तेरे अपॉइंटमेंट के लिए भी टाइम से पहुंचना पड़ेगा |” अमन ने टीटी के
डर को लगभग नकारते हुए कहा और दरवाजे से लटक कर बाहर की ओर झाँकने लगा, अपनी लाइफ
की भले लगी पड़ी हो लेकिन यार का ख्याल सबसे पहले, ये भी इंजीनियरिंग का महत्वपूर्ण
कायदा है | बाहर की ओर झाँकने के बाद उसने अपना चेहरा मधुकेश की तरफ फेरा और युद्ध
जीत जाने वाली मुस्कान के साथ कहा “भाई रेडी, ट्रेन जैसे ही रुके हमने भागना है
अगर पकड़े गए तो खैर नहीं |” “ठीक” ‘धौलपुर’
बड़े अक्षरों में स्टेशन का नाम लिखा हुआ
था जो ठंडी हवा के सबूतों के आधार पर राजस्थान की सीमा में प्रवेश कर चुकने का
फैसला सुना रहा था लेकिन सबसे इतर ये दोनों घबराहट को छुपाये मौके को भुनाने की
तलाश में लगे थे | ट्रेन रुकने को ही थी कि अमन उतर गया और मधुकेश से सामान लेकर
आगे की ओर चल दिया, मधुकेश अपने पैर की चोट से मजबूर ट्रेन पूरी तरह से रुकने के
बाद ही उतर पाया | मधुकेश जब तक सामान के पास पहुंचा अमन टिकट काउंटर से दिल्ली की
दो टिकट प्राप्त कर चूका था, मधुकेश ने आकार अमन को हड़काया “अबे इतनी भी क्या
जल्दी है |” तभी मधुकेश के कंधे पर किसी ने हाथ रखा और पूछा “हीरो टिकट?” अमन
ने मधुकेश से परे नज़रें डाली वहाँ पर टीटी हाथ में फाइन वाली डायरी लेकर खड़ा हुआ
था, मधुकेश संभले उससे पहले अमन बोल पड़ा “अरे सर, अभी अभी तो आये हैं स्टेशन पर,
बस यहीं से जर्नी शुरू करेंगे, दिल्ली जाना है हमें |” “थोड़ी देर पहले आये होते तो
ट्रेन मिल जाती कोई बात नहीं अब अगली का इंतज़ार करो;” इतना कह टीटी चलने को हुआ
तभी अमन ने टीटी की टांग खीचने की जुगत भिड़ाते हुए उससे अगली ट्रेन का टाइम पूछा
परन्तु टीटी ऐसे अनसुना करके चल दिया जैसे उसकी सेटिंग, बीवी के सामने ही उससे
बतियाने की कोशिश कर रही हो | जैसे ही वो नज़रों से ओझल हुआ, अमन और मधुकेश दोनों
जोर जोर से हंसने लगे |
दो घंटे
के इंतज़ार में दोनों ने बारी बारी से नींद भी पूरी की और सामान की निगरानी भी, जब
ट्रेन आई तो दोनों किसी तरह महाभारत के रण की हालत वाले कम्पार्टमेंट में घुसकर
अपने लिए थोड़ी बहुत जगह बनाने में कामयाब हो गए | सोते, जागते, कभी इसका सर उसके
कंधे पर तो कभी उसका इसके कंधे पर, किसी तरह फ़रीदाबाद स्टेशन तक पहुँच गए, अब
हल्की बारिश होने लगी थी तो दोबारा सो-जाने का कोई सवाल ही नहीं उठा, रास्ते के
दृश्यों को हिंदी फिल्मों के नायकों की तरह निहारते हुए और अपने भविष्य की जाने
कितनी घोषणाओं की विज्ञप्ति झाड़ते हुए दोनों जल्द ही निज़ामुद्दीन स्टेशन पर सामान
थामे उतर गए | स्टेशन चाहे बड़ा हो छोटा, सुविधाओं से युक्त हो या नहीं कोई फर्क
नहीं पड़ता बस पानी मिल जाए इंजिनियर अपने बाकि कामों को जैसे-तैसे टेका लगाकर
निपटा लेने में बड़े कुशल होते हैं, इस गुण के दर्शन इन्होनें भी करवाए और फिर मन-मोहने
वाली बूंदाबांदी के बीच मधुकेश और अमन एक ऑटो लेके, SIC की ओर चल दिए जहां मधुकेश
का अपॉइंटमेंट था | हॉस्पिटल की लाइन में लगने का दुःख वहाँ घुमती हुई नर्सों ने
वैसे ही घटा दिया था जिसके कारण कब टेस्ट का नंबर आ गया पता ही नहीं चला,
MRI,X-RAY और इसी तरह के कुछ टेस्ट्स के बाद मधुकेश और अमन ने रिपोर्ट प्राप्ति के
इंतज़ार में मधुकेश के घर से रात को साथ लाई पूड़ियाँ अचार के साथ खाई, जिसमें भी एक
अच्छे दोस्त की तरह अमन ने जी भर के कमियां निकाली और मधुकेश की गालियाँ सुनता रहा
| SIC से फ्री होने के बाद दोनों मुनिरका रवाना हुए क्योंकि वहाँ देव के भईया रहते
थे तो रुकने का प्लान वहीं का सेट हुआ था, देव भी एक अभागा इंजिनियर है जो इन्हीं
के साथ है कॉलेज में लेकिन इस वक़्त उसने ठहरने का इन्तेजाम करवाया हुआ है | अब
दोस्त का घर हो और वहाँ ना रुके तो साला दोस्त किस काम का | दिन भर की उलझनों के
चलते दोनों काफ़ी थक गए थे इसलिए ज्यादा मुंह चलाये बिना खाना खाकर सीधे बिस्तर से
मुलाक़ात की | सुबह उठने पर निर्णय हुआ कि ब्रेकफास्ट वगेरह करके मधुकेश ताऊजी के
घर यानी फ़रीदाबाद को जायेगा और अमन ट्रेन पकड़कर अपने घर, जैसा कि तय हुआ था
मुनिरका से मधुकेश ने केन्द्रीय सचिवालय तक अमन का साथ निभाया और फिर एक मजबूर
प्रेमिका के माफ़िक वहाँ से उसे अकेला छोड़ फ़रीदाबाद चला गया | यहाँ मेट्रो से
अनभिज्ञ अमन जैसे बना वैसे पेंच लड़ाते हुए नई दिल्ली पहुंचा और कोटा जाने वाली
ट्रेन की खोजबीन शुरू की तो पता चला कि जनता एक्सप्रेस नामक एक ट्रेन 1.30 बजे के
लिए थी, लेकिन ये क्या मोबाइल के वॉलपेपर में तो 2 बजकर 08 मिनट हो रहे थे | अचानक
अमन को याद आया कि वो लन्दन में नहीं भारत में है और वो प्लेटफार्म नंबर 7 की तरफ़
पूरी जान लगाकर दौड़ पड़ा,और सीढियाँ लांघते हुए स्टेशन छोड़ रही एक ट्रेन में अंधों
की तरह चढ़ गया, जब साँसे सामान्य हो गई तब उसने बगल में गुटका चबाते हुए शख्स से
सवाल किया, “अरे भाई ट्रेन कौन सी है ?” गुटका खाने वाले व्यक्ति ने थूकने की जहमत
उठाये बिना कहा “जनता एक्सप्रेस |”
-- कमलेश
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