समय छटपटा रहा है.....
तमाम गुनाहों के हिसाब जिस दिन को लिए जाएंगे
कितने ही अछूते रह लें हम-तुम पर बच नहीं पाएंगे ।
सोचोगे तुम गर कि नहीं हैं खून में तुम्हारे ये हाथ तो,
गुनाह तब हाथों के नहीं विचारों के भी खोजे जाएंगे ।
बचने की कड़ी में लगे किसी को विचारों का आसरा,
तो जो नहीं बोल पाए थे वे भी गुनहगार कहलाएंगे ।
मत होना खुश तुम गर जो अब तक बचते आए हो,
नहीं सोचने वाले कुछ, भी संगीन अपराधी हो जाएंगे ।
मौत की सज़ा के लायक तो हम शायद हैं ही नहीं पर,
अगर जीते छोड़ दिए गए तो क्या यह समझ पाएंगे ?
समय छटपटा रहा है सामने हमारी आंखों के अभी,
गर ना चेते अब तो फ़िर इसके कहर में ही बह जायेंगे ।।
-- कमलेश
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