कार्य

 

 "वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता |”                                                                 -- स्वामी विवेकानंद

विचारों की प्रक्रिया में हिस्सेदार बनकर, आसपास के वातावरण को सुनकर और उसका अवलोकन करने के बाद हम अच्छी तरह चीजों के दोहराव तथा उनका आकलन करके उनसे ज्यादा प्रभावी तरीके से सीख सकते हैं | किसी विचार के तथ्यों को सुनकर, उसके महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखकर हमें अपने काम करने की प्रणाली को बहुत ही सुदृढ़ रखना होता है अगर हम सही मायनों में काम से लगाव रखते हैं | काम की शुरुआत से पहले हमारा उससे जुड़े सारे पहलुओं से अवगत होना अत्यंत आवश्यक है कि किस तरह वो हमारे काम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और किस प्रकार उनसे निपटा जाना चाहिए, जोकि बाद में हमें बाकि हिस्सों के निर्धारण में सहायता प्रदान करता है; इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में डिज़ाइन थिंकिंग कहते हैं | अपने पुरे काम के सुनियोजित निर्धारण के बाद उसका निचले सिरे से शुरुआत तक आकलन करना भी बहुत आवश्यक है ताकि काम की रुपरेखा, काम करने के मध्य में भंग होने से बच सके और हमारे तथ्यों की ज़मीनी तौर पर पुष्टि हो सके; यह प्रक्रिया रिवर्स इंजीनियरिंग कहलाती है, जोकि आपकी कमियों को सामने लाने में आपकी मदद करती है, और काम करने के प्रक्रिया को सरल बनाती है |

                किसी भी काम को करने के लिए हमारा पहले उसके प्रति केन्द्रित होना बहुत आवश्यक होता है, ज़रूरी यह है कि हम अत्यधिक सोचने की बजाय काम को ज़मीनी रूप से करने की कोशिशों पर जोर दें, ज़मीनी कोशिशों के वक़्त अपने दिमाग तथा ताक़त को उसी एक काम में तन्मयता से लगायें और एक ही समय में ज्यादा काम करने से बचने की तैयारी रखें ताकि ध्यान का बंटवारा ना होने पाए | हमारे काम करने की क्षमता हमारे काम करने के लिए निर्धारित किये गए समय पर भी बहुत निर्भर करती है, क्योंकि जब हम अपने काम को हमारी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों के उच्च होने की स्थिति में करते हैं तो वह काम अत्यधिक प्रभावी साबित होता है और हमारा ध्यान केन्द्रित होने में सहायता मिलती है | काम का निर्धारित टुकड़ों में होना भी बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो नियमित अन्तराल पर काम करने वालों में, एक नई उर्जा का संचार करती है और काम करने की क्षमता में वृद्धि करती है, जिससे वह काम के बोझ और उलझनों से बच निकलने में कामयाब रहते हैं |

            काम करने की प्रक्रिया का हिस्सा बने रहने के साथ साथ मानसिक तौर पर मजबूत होना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि शारीरिक रूप से | जब आप काम में रम जाते हैं तब कई दफ़ा आप असंतुलित हो सकते हैं लेकिन नियमित तौर पर अन्तराल और आराम का हिस्सा बनते रहने से आप कई सारी मुश्किलों से आसानी से निबट सकते हैं | अपने काम को करते समय हमें चाहिए कि हमारी मुद्रा में वह ताक़त हो जो काम को करने के लिए आवश्यक है तथा दिमागी तौर पर चलने वाली कार्य-प्रणाली में विश्वास को बनाये रखना भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि काम करने की क्षमता दिमाग पर ज्यादा निर्भर करती है | काम के शुरूआती क्षणों से लेकर अंत तक अपने पर विश्वास, और काम के तरीकों पर भरोसा कायम रखें तथा साथ ही आत्म-विश्वास में गिरावट से बचने की तैयारी को पूरा रखें ताकि अचानक सामने आने वाले परिणामों का सही तरीके से मुआयना किया जा सके | काम को एक निश्चित अवधी में रोककर उसके हो चूके और होने वाले पहलुओं का अध्ययन करना जिसे नियमित आकलन कहा जा सकता है, जो बाकि के काम को नई दिशा देने में सहायक होता है, बहुत आवश्यक होता है | काम की शुरुआत से अंत तक धैर्य बनाये रखना भी काम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, कई बार ऐसा होता है कि किसी काम में पूरा महिना झोंक देने के बाद अंतिम दो दिनों में वह चमत्कारिक तरीके से घटित हो जाता है, तो इसीलिए चमत्कारों पर निर्भर ना रहें, अपने प्रयासों को अनवरत ज़ारी रखें और अंतिम क्षण तक काम का हिस्सा बने रहें, ताकि काम का कोई भी हिस्सा प्रभावित ना हों |

   यह निर्धारित प्रक्रिया जो हर किसी प्राकृतिक या मानवीय कार्य के सफल होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, वह आपको इन सारे पड़ावों से गुज़ारकर तथा सारी मुश्किलों से सही तरीके से निबटकर, काम को अंजाम देने में अत्यन्त लाभदायक साबित हो सकती है |   

                                                     -- कमलेश

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