क्यूं नहीं.........अगर मैं

क्यूं प्यास ना बुझाई जाए अगर
मैं समन्दर को पी सकता हूं,
क्यूं सोया जाए जबरन गर मेरी आंखे
तारों को देखना चाहती है,
क्यूं बिखेर कर समेटा जाए किसी को
अगर मैं कुछ संवारने की ताकत रखता हूं ।

क्यों वादों को पूरा ही किया जाए
अगर कोई उन्हें अधूरा छोड़ना चाहता है,
क्यूं सपनों पर दीवारें बनाई जाए गर
उनके लिए आसमान भी छोटा पड़ता है,
क्यूं वापसी की उम्मीद लगाई जाए किसी से
गर जाए कोई तो फ़िर लौट नहीं पाता है ।

क्यूं मजबूरन दौड़ा जाए रेस में
गर मैं धीमे धीमे भी चल सकता हूं,
क्यूं बांधा जाए मेरी रूह को यूं
अगर मैं खुल कर जीना चाहता हूं,
क्यूं हो एक ही मरतबा मोहब्बत
गर मैं हजारों दफा प्रेम कर सकता हूं ।
                                      -- कमलेश

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