इबादत


बेवक़्त की बारिश ने आज
सारे ज़ख्मों को धोया,
बदलियाँ स्वागत में जुटी है,
हवाओं ने अभी अभी एक ख़त पहुँचाया,
जिसे आसमान ने चीख-चीखकर पढ़ा,
ख़बर है कि तुम आने वाले हो ।

इतनी जल्दी भी क्या है वैसे ?
मुझे तसल्ली से नशा करने दो
इस जवान होते इश्क़ का,
देख लेने दो जी भरकर
इंतज़ार में तड़पते रिश्ते को,
जान लेने दो मुझको
ख़्वाबों में छिपे सब राज़ ।
खोद लेने दो एक खूबसुरत कब्र
प्रेम में मौत के बाद,
सुकून से दफ़न होने के लिए ।

तुम्हें पसंद है हवाओं की सादगी,
और मुझे मोहब्बत है बेगानेपन से;
तुम्हारी हसरत है बाद बारिश के
साथ मेरे शामें गुज़ारने की,
मैं चाहता हूँ कि आसमां रोता रहे
उम्रभर ज़मीन से अपने इश्क़ में ।

कितनी अजीब है हमारी
इबादत की तरकीबें ?
तुम सवेरे-सवेरे खोजती हो
घर में पूजा का कोना,
मैं सुबह इबादत की बजाय
तुम्हारे साथ चाय पीना चाहता हूँ ।
                                  -- कमलेश

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