बीज का चांद
कुछ दिनों से मुकद्दर
कशमकश में जी रहा है,
शायद कुछ फैसले उसे
मेरे वक़्त के साथ करने हैं ।
बेख़याली में नहीं ना सही
होश में ही सही
कोई तो ये ख़बर सुनाए,
के आज मुकद्दर ने इस धरती का
कर्ज़ा चुकता कर दिया है और
अब सब के साथ इंसाफ़ ही होगा ;
चाहे फ़िर वो पत्थर हो या इंसान ।
बचकानी लगती है मुझको
चमत्कारों की सारी कहानियां
पिछले दिनों के बाद से,
शायद कोई झूठ बोला गया था मुझे
जिसका सच मैं अब नहीं चाहता ।
बीज के चांद को गर जो देखता हूं,
आसमान के तारों के बीच,
तो उसके बाकी हिस्से की परछाई भी
मुझे दिखाई पड़ती है अब ।
-- कमलेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें