कुछ बातें

कभी कभी डरा देता है
मुझको
खामोश बैठ जाना तेरा
मेरे पहलु में,
ख़ुमारी तेरी मौजूदगी की
होती तो ख़ूब है
लेकिन वो अचानक
भाग खड़ी होती है,
तेरे मुझको छू लेने पर
और मैं,
महसूस करने लगता हूँ
फिजिक्स के सारे सिद्धांत
तेरे हाथों की नरमाहट में ।

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बातों को
बगीचे के पार धकेलते वक्त
पैर के अंगूठे से तेरी पगतलियों को,
छूने की वो साज़िश
जब तुम भांप लेती हो,
तो लगता है
चाणक्य को तुम्ही ने सिखाया है ।
मेरे लिए खरीदा गया
वो तोहफ़ा
जिसे तुम
यह कहकर देने से मना कर देती हो
कि 'जाओ मन नहीं है तुम्हें देने का'
और फिर तुम चुप हो जाती हो ।

तुम्हारी नज़र को
सूरज की किरणों की तरहा
खुद पर बिखरते देखना
और भी मुश्किल हो जाता है
उस वक्त,
जब तुम
पूछती हो कि
'चुप्पी में ख्याल क्या आते हैं तुम्हें ?'
'जानां' मैं कहना भूल गया
कि सारी बातें बताई नहीं जाती,
"कुछ बातें
चाँद सी भी होती हैं ।"
                           .....कमलेश.....

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