प्रेम और बदलाव

आकर्षण के सिद्धांत के अनुसार कोई भी दो चीजें एक निश्चित दूरी तक ही एक दूजे के क़रीब रह सकती है, यह नियम सारे रिश्तों को बांधे हुए है और यह दुनिया अब तक इस डर में जी रही है कि अत्यधिक नज़दीकियां भी अक्सर दूरियों की वज़ह बन जाया करती है । ज्यादा दिनों तक कोई मेहमान, मेहमान बनकर रहने लगे तो वो मेहमान नहीं रह जाता,ठीक इसके उलट अगर ज्यादा दिनों तक कोई इंसान बना रहता है तो उसे इंसान बने रहने की ज़रूरत नहीं होती । तुम्हारा मुझसे मिल जाना ऐसे ही किसी मेहमान की तरह किसी शहर के एक चौराहे पर, और फ़िर मेहमान न होकर धीरे धीरे इंसान बनते रहना किसी उम्मीद में, किसी प्लेटफॉर्म सीट पर बिलकुल मेरे बगल में बैठे बैठे, मुझे इन सारे नियमों का उलंघन लगता है । आकर्षण के सिद्धांत के सारे तर्क तुम अपने होने से ही जब झूठला देती हो तब किसी भी नियम के कोई मायने नहीं रह जाते, और फ़िर इस अविरल प्रवाह में नियमों की श्रंखला का अस्तित्व प्रेम-गंगोत्री में विलीन हो जाता है । मेरी आंखों की अलकनंदा को अपनी भागीरथी में समाहित कर, ज़िन्दगी को देव प्रयाग समझ इतनी सहजता से गंगा बना देना, किसी भी नियम के मुताबिक संभव नहीं, इसे नियम की सीमाओं से परे जाकर मुमकिन करना केवल तुम्हारे द्वारा ही मुमकिन है ।
                                                             - कमलेश

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