कवितायें (दक्षिण यात्रा)
कविता - १
एक पगडंडी
भाग रही है अपनी जान बचाने
दौड़ती हुई रेल की पटरियों के साथ;
शायद
कोई पक्की सड़क,
उसका पीछा कर रही है।
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कविता - २
एक नज़र ने देखा मुझको
दूरी के दूसरे छोर से,
क्या चाहा था उन आँखों ने
झुकाए नज़र अपनी यही सोचता हूँ;
प्रेम की चाह में जीने वाले सुन लें,
इस दुनिया में विश्वास की कमी है
अपने दिलों को भरोसे से सींचते रहना।
- कमलेश
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