प्रेम और हम

वो मिली थी मुझसे जब पहली दफा तो कभी सोचा नहीं था उसने कि यहाँ तक पहुंच जाएगी ज़िन्दगी ख़्वाबों के पहियों पर दौड़ते हुए, और न ही मैंने कभी ऐसा पुलाव पकाया था अपने दिल में। वो खिलखिलाती है तो सोचता हूँ कि सारी दुनिया को म्यूट पर डाल दूँ। ऐसी ही एक हँसी ने खींच लिया मुझको उस तक, और तब से मैं बस खिंचता चला जा रहा हूँ, कहाँ! यह अब तक रहस्य है। मैंने कहा था उससे कि मेरा इंतज़ार करते हुए पीपल के नीचे न खड़ी रहे, लेकिन उसने मेरी एक न सुनी, उसके न सुनने को प्रकृति ने इतनी गंभीरता से लिया कि जब भी मिलता हूँ उससे वो पीपल के पेड़ के पास ही मिलती है। पहाड़ों ने मुझे इतने ख़त लिखे लेकिन मैं उनके जवाब देने में आलस ही करता रहा ताउम्र, पिछले दिनों उसने ख़त लिखा मुझे और भेजा पहाड़ों के ज़रिए। पहाड़ इस बार मुझे उठा ही ले गया अपने जवाबों की ख़्वाहिश में, ज़िन्दगी ने भी समर्पण करते हुए समूचा दायित्व खुला छोड़ दिया प्रकृति के जिम्मे। 

Source - Stalktr.net

        एक रात सड़क पर चलते हुए जब मैं किसी आवाज़ को सुनकर रुक गया तो उसने हाथ थाम लिया मेरा हौले से आकर, मैंने नज़रें उठाई ऊपर और मुस्कुराकर उसे गले लगा लिया: हम पीपल के नीचे पहुँच गए थे। कुछ शामें हर कोई गुज़ारना चाहेगा उसकी ज़ुल्फ़ों के साये में, जो बस एक बार देख ले उसे खुले बालों में। मैं रुका हुआ हूँ इस बात को दिल में दबाए कि किसी दिन रात को उठूँ और खोल दूँ उसके बाल और फिर निहारता रहूँ उसे सिरहाने बैठकर तमाम रात। वो चाहती है उड़ना और मुझे पिंजरे पसंद नहीं आते, वो किसी कहानी की अंतहीन डोर सी है और मैं उस कहानी का कहानीकार। वक़्त इतना छोटा पड़ जाता है कि मैं उसे चुटकी में उड़ा देता हूँ जब उससे दूर होने की किस्मत होती है और जब उसके पास होता हूँ तो वक़्त को मुझे एक बिगड़े बच्चे की तरह अपनी कलाई पर बांधकर रखना पड़ता है। वो कहती है घड़ी पहनना और वक़्त का पीछा करना दो अलग अलग कृत्य हैं, मुझे उसकी आँखों में अंजा हुआ काजल दिखता है तो मैं भूल जाता हूँ कि वक़्त किस चिड़िया का नाम है। वो शिकायत करती है कि सारी थकान मैं उसके पास जाकर ही मिटाने की कोशिशें करता हूँ, अब उसे कोई कैसे समझाए कि उसके आँचल से ही तो सुकून के सारे कारण जन्मते हैं।
                                                                                                                                - कमलेश

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