इंतज़ार और तुम

तुम देखती हो थोड़ी सी गर्दन झुकाकर मेरी ओर तो ऐसा लगता है कि सूरजमुखी देख रहा है सूरज को। सातों आसमान के पार से जब गूँजता है तुम्हारा स्वर तो इतनी ज्यादा ख़ुशी होती है कि मैं जून में भी नंगे पैर चल लेता हूँ। तुम मिली इस दफा मुझे पहाड़ों की गोद में, जहाँ मुझे कई जन्मों से आना था शायद: वहाँ आकर तो यही लगा था मुझे, तो घर वापसी जैसा भाव पैदा हो गया। तुम्हारे साथ प्रकृति को इतना सहज पाता हूँ जैसे कि किसी ने इसकी जंज़ीरें खोल दी हों, तुम खिल उठती हो जब पानी की चंद बूँदों से तो मेरा मन करता है कि उतार दूँ बादलों का तमाम पानी जो तुम तक पहुँच कर अपना जीवन सफल कर ले। जिस तरह दुनिया संजो रही है सारे सूत्र और समीकरण, मुझे ऐसा लगता है उसने तुम्हें पहचाना ही नहीं अब तक, कभी कभी जी करता है कि बिग बैंग थ्योरी वाले वैज्ञानिक को तुमसे मिलाऊँ, ताकि वो अपनी भूल सुधार सके। तुम्हारे साथ रहता हूँ तो अकेलेपन के सारे सिद्धांत मुझे खोखले लगते हैं, तुम जब डर जाती हो किसी जानवर से, उससे अपना प्रेम जाहिर करते हुए तो तुम्हें भँवरा बनकर छेड़ने को जी करता है। 

          उस दिन जितनी सहजता और ध्यान से तुमको स्कूटी चलाते हुए देखा मैंने तो मुझे तुम कृष्ण सी प्रतीत हुई और मैं बस मुस्कुरा कर रह गया। जितनी रातें हमारी हकीक़त की गवाह रही उनको आज भी याद है कि तुमको मेरे दिल के किस तरफ बैठना पसंद है, जितनी यात्राएँ हमसे होकर गुज़रीं वो जानती हैं कि सफ़र कितना कीमती है हमारे जीवन में। उस शाम जब लिपट गयी पायल तुम्हारे पैरों पर, मेरे हाथों से गुज़रते हुए तो ऐसा लगा जैसे हथेलियों से समंदर गुज़र गया हो, जब चलती हो तुम उन्हें पहने तो मन करता है इतिहास में जाकर तानसेन से कहूँ कि तुम रहने दो कोई है दुनिया में जिसके सामने तुम फ़ीके पड़ जाओगे। पानी कितना निष्पक्ष और सरल दिखता है जब वह बहता है किसी खण्ड पर, लेकिन उस रोज़ मैंने जाना कि पानी तुम्हारे स्पर्श से अपना सारा संयम खो बैठता है। तुमने न जाने किस घड़ी मेरा हाथ थामा था राहों की पगडंडी पर, बाद उसके इतने अजनबी आये और सब अपने होकर गुज़रे। तुमने कितने परिंदों को प्रेम की भाषा पढ़ाकर उनको उनके घर पहुँचा दिया, जब तुम्हारे नाजुक कदम सरलता से यह सब निभाते हैं तो उन्हें चूमने का मन करता है। सुनो, मैं भटक गया हूँ दुनिया के बनाए हुए हर रास्ते से, मुझे नहीं याद किसी भी भाषा का कोई शब्द, गिनती क्या होती है यह गणित के हवाले; मैं इंतज़ार में खड़ा हूँ एक पीपल के जैसे लगते पेड़ के नीचे, तुम मुझे ढूँढकर, घर पहुँचा देना।
                                                                                                                                            - कमलेश

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