व्यथा
हर बीती बात अब पराई लगती है,
ऐ जिंदगी अब मुझे धूप लगती है ।
उड़कर आते थे कभी खुशी से घर,
अपने घर में तो अब घुटन लगती है ।
चाहा के ना लिखूं किसी के दर्द को पर,
हर तकलीफ अब मुझे अपनी लगती है ।
ये जो घूमते है कंधो पर अपने बेटे लेकर,
कहदो मुझको तो अब बेटियाँ अच्छी लगती है ।
भले ही लगाये वो काजल आँखो में अपनी,
मुझे तो बिन श्रंगार के ही अब अच्छी लगती है ।
.....कमलेश.....
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