बचकानी हरकतें ..........
Source- We Heart It |
आखिरकार दिल की मेहनत चार दिन बाद रंग लायी, सोमवार को जब उसने आँख खुलने पर उसने मोबाइल चेक किया तो वह चौंक गया, ६:१२ मिनट हो रहे थे, वह तैयार होकर स्कूल के लिए निकला । माँ ने देखा तो देखती रह गई, भाई बहन तो लेट उठते थे ; आशु पहुँच गया, मोंटेसरी पब्लिक स्कूल के गेट । कुछ मिनट बाद वह आई महरुन कलर का सूट पहने, आशु की आँखें फटी की फटी रह गयी । लेकिन जैसे वह पास आई आशु बमुश्किल मुस्कुरा पाया, वह आई और बच्चे को छोड़कर छोटी सी स्माइल पास करके निकल गयी ।
११.५२ बजे फिर वो दिखी, आशु इस वक़्त चाय की दुकान पर खड़ा था, एक हाथ में चाय और दुसरे में पारले जी थाम रखा था और उसे देेेखते ही आशु की टाइमिंग बिगड़ गयी । "टाइमिंग ठीक करने के लिए चाय में बिस्कुट भिगोकर खाना चाहिए ये एक तथ्य है"। उसने आशु को देखा और खिलखिलाते हुए हंसकर चली गई, आशु ने पीछा करने की कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी । दूर से होने वाली मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा, महिना भर बिता होगा । आज आशु थोड़ा देरी से पहुँचा तो वो उसे हरे रंग के पटियाला सूट में दिखी । आशु ने कुछ कहने की हिम्मत की लेकिन यह सोचकर रुक गया कि बोले क्या ? कुछ देर बाद उसके बोल फूटे "छोटे बच्चों की बचकानी हरक़तें कितनी प्यारी होती है ना !" उसने तिरछी नज़र से देखा और तेजी से चली गई, आशु अपना माथा दिवार से ठोकने के बारे में सोच रहा था कि उसने क्या कह दिया, खैर उसने कुछ दिनों में उसका नाम पता किया "श्रेया", यही नाम था उस लड़की का ।
११.५२ बजे फिर वो दिखी, आशु इस वक़्त चाय की दुकान पर खड़ा था, एक हाथ में चाय और दुसरे में पारले जी थाम रखा था और उसे देेेखते ही आशु की टाइमिंग बिगड़ गयी । "टाइमिंग ठीक करने के लिए चाय में बिस्कुट भिगोकर खाना चाहिए ये एक तथ्य है"। उसने आशु को देखा और खिलखिलाते हुए हंसकर चली गई, आशु ने पीछा करने की कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी । दूर से होने वाली मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा, महिना भर बिता होगा । आज आशु थोड़ा देरी से पहुँचा तो वो उसे हरे रंग के पटियाला सूट में दिखी । आशु ने कुछ कहने की हिम्मत की लेकिन यह सोचकर रुक गया कि बोले क्या ? कुछ देर बाद उसके बोल फूटे "छोटे बच्चों की बचकानी हरक़तें कितनी प्यारी होती है ना !" उसने तिरछी नज़र से देखा और तेजी से चली गई, आशु अपना माथा दिवार से ठोकने के बारे में सोच रहा था कि उसने क्या कह दिया, खैर उसने कुछ दिनों में उसका नाम पता किया "श्रेया", यही नाम था उस लड़की का ।
लेकिन चिंता की बात यह थी कि इस दरमियान वो लड़की दिखी नहीं उस स्कूल के आसपास और उसके कई दिन बाद तक भी,आशु ने उम्मीद को ढीला छोड़ दिया था, लेकिन स्कूल जाना नहीं छोड़ा था । एक शुक्रवार वो गेट पर खड़ा था कि पीछे से एक मखमली आवाज़ कानों में पड़ी "वाकई बहुत प्यारी होती है बच्चों की बचकानी हरक़तें ।" आशु पीछे मुड़ा तो अवाक रह गया श्रेया उसके पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी, आशु एकटक उसे देखने लगा तब कुछ देर बाद श्रेया ने माहौल की चुप्पी तोड़ते हुए कहा "चाहने पर ये इस स्कूल के गेट पर सुबह के ७ से दोपहर तक देखी जा सकती है" ।
.....कमलेश.....
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