बचकानी हरकतें ..........


Source- We Heart It
जब आमजन काम पर निकल चूके होते, सड़कों पर शोरगुल मच रहा होता और सूरज चाचा गुस्सा होने लगते तब कहीं माँ की डाँट और भाईयों के उलाहने सुनकर आशु उठता । बारह बजे अपने घर की बालकनी पर बैठकर नाश्ता करते वक्त उसकी अँगुलियाँ वाटस्एप और फेसबुक पर मार्निंग वाॅक कर रही होती । लेकिन आज मार्निंग वाॅक में खलल पड़ा गली से आती एक प्यारी लेकिन गुस्से भरी आवाज से, एक लड़की जो पास खड़े आॅटो वाले को डाँट रही थी कारण पता नहीं । आशु की निगाह गली में गई तो थी किंतु लौटी नहीं, नज़र चुपचाप उस पीले सूट वाली लड़की के पीछे हो ली जो अब अपनी लटों को चेहरे से हटाकर कानों के पीछे धकेल कर अपने रास्ते पर चल पड़ी थी । अगले दिन आशु थोड़ा वक़्त पर उठकर नाश्ता कर रहा था, लेकिन आज उस बैचेनी में इंतज़ार छुपा हुआ था । कुछ देर बाद वह दिखी एक सात साल के बच्चे के साथ, उसका बस्ता हाथ में लिए और नीले सूट में, अपने होठों पर मुस्कराहट बिखेरती हुई वो उस बच्चे को स्कूल से लेकर घर वापस लौट गई । आशु ने पड़ताल की तो पता चला कि स्कूल ७ से १२ तक चलता है, दो दफ़ा अनजानी सुरत देखने के बाद मचला हुआ दिल प्रत्यक्ष रुप से मिलना चाह रहा था । गुरुवार को जल्दी उठने की नाकाम कोशिश भी की आशु ने जो कि उसे चिड़ा रही थी के "बेटा तुमसे ना हो पायेगा"।
                          आखिरकार दिल की मेहनत चार दिन बाद रंग लायी, सोमवार को जब उसने आँख खुलने पर उसने मोबाइल चेक किया तो वह चौंक गया, ६:१२ मिनट हो रहे थे, वह तैयार होकर स्कूल के लिए निकला । माँ ने देखा तो देखती रह गई, भाई बहन तो लेट उठते थे ; आशु पहुँच गया, मोंटेसरी पब्लिक स्कूल के गेट । कुछ मिनट बाद वह आई महरुन कलर का सूट पहने, आशु की आँखें फटी की फटी रह गयी । लेकिन जैसे वह पास आई आशु बमुश्किल मुस्कुरा पाया, वह आई और बच्चे को छोड़कर छोटी सी स्माइल पास करके निकल गयी ।
                               ११.५२  बजे फिर वो दिखी, आशु इस वक़्त चाय की दुकान पर खड़ा था, एक हाथ में चाय और दुसरे में पारले जी थाम रखा था और उसे देेेखते ही आशु की  टाइमिंग बिगड़ गयी । "टाइमिंग ठीक करने के लिए चाय में बिस्कुट भिगोकर खाना चाहिए ये एक तथ्य है"। उसने आशु को देखा और खिलखिलाते हुए हंसकर चली गई, आशु ने पीछा करने की कोशिश की लेकिन निराशा हाथ लगी । दूर से होने वाली मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा, महिना भर बिता होगा । आज आशु थोड़ा देरी से पहुँचा तो वो उसे हरे रंग के पटियाला सूट में दिखी । आशु ने कुछ कहने की हिम्मत की लेकिन यह सोचकर रुक गया कि बोले क्या ? कुछ देर बाद उसके बोल फूटे "छोटे बच्चों की बचकानी हरक़तें कितनी प्यारी होती है ना !" उसने तिरछी नज़र से देखा और तेजी से चली गई, आशु अपना माथा दिवार से ठोकने के बारे में सोच रहा था कि उसने क्या कह दिया, खैर उसने कुछ दिनों में उसका नाम पता किया "श्रेया", यही नाम था उस लड़की का ।
                         लेकिन चिंता की बात यह थी कि इस दरमियान वो लड़की दिखी नहीं उस स्कूल के आसपास और उसके कई दिन बाद तक भी,आशु ने उम्मीद को ढीला छोड़ दिया था, लेकिन स्कूल जाना नहीं छोड़ा था । एक शुक्रवार वो गेट पर खड़ा था कि पीछे से एक मखमली आवाज़ कानों में पड़ी "वाकई बहुत प्यारी होती है बच्चों की बचकानी हरक़तें ।" आशु पीछे मुड़ा तो अवाक रह गया श्रेया उसके पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी, आशु एकटक उसे देखने लगा तब कुछ देर बाद श्रेया ने माहौल की चुप्पी तोड़ते हुए कहा "चाहने पर ये इस स्कूल के गेट पर सुबह के ७ से दोपहर तक देखी जा सकती है" ।
                       .....कमलेश.....

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