तुम, मैं या वक़्त?
Source - Pinterest.com मु झे नहीं पता कि मैं क्या दे सकता हूँ तुम्हें , लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूँ कि अगर देखोगे मेरी आँखों में कभी जो उम्मीदों के साये के साथ तो वहाँ तुम्हें इतना तो हौसला मिल जायेगा कि मैं खड़ा हूँ वहीं जहाँ तुम मुझे अपने लिए देखना चाहते हो। ज़िन्दगी को इस तरह जीना की उसका ख़ुद का मन करे कि वह तुम्हारे इर्द गिर्द हमेशा ही घूमती रहे जिस तरह तुम अपने प्रेम और जीवन के आसपास घूमते हो। बहुत आसान होता है किसी की ज़िन्दगी में अपने लिए एक जगह बना लेना लेकिन उस जगह रहकर भी सामने वाले शख्स़ को उसकी जगह और उसका वक़्त नियत समय पर देते रहना बहुत कठिन है। मैं देखना चाहूँगा तुम्हें उसी तरह अपने मुक़ाम पर बैठे हुए जिस तरह मैंने देखा था पहली बार एक तितली को फूल पर बैठे हुए , मेरा प्रेम तुम्हारे रास्ते में उतना ही आड़े आएगा जितना कि बुद्ध का अपनों से किया प्रेम आया था उनके निर्वाण के रास्ते में। तुम देखना किसी रोज़ शांत नदी को , जब तुम्हें लगने लगे थकान इन सारे कामों और यात्राओं से जो तुम इतने वर्षों से करते जा रहे हो , तब मैं तुम्हें देखूँगा उस नज़र से जिसमें तुम ख़ुद को ढूंढने की छवि...