अतीत की खिड़की में - २

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सागर ने अक्टूबर की शुरुआत इंडिया हेबिटेट सेंटर से की, उसकी अनिश्चितताएं उसे कहाँ ले जा रही थी यह सागर को कभी जानने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। इधर हीर ने अक्टूबर का स्वागत अपने अंदाज़ में ही किया, कई सारे सफ़र, नई दोस्तियाँ और अकस्मात सी मुलाक़ातें। दिन जितनी जल्दी गुज़रना चाहिए उतनी जल्दी अगर वाकई में गुज़रे तो ऐसा लगता है कि हम हवा के झोंके से उड़े जा रहे हैं लेकिन ऐसा कुछ भी न तो हीर और न ही सागर के साथ हो रहा था। हवाएँ अपनी रफ़्तार के साथ कभी सागर को कल से आज तो कभी हीर को आज से कल में ले जा रही थी और वापिस लेकर भी आ रही थी। अक्टूबर की रातें सागर के लिए चाँदनी और पुरानी यादों का एक बॉक्स लेकर आई जब घर जाने के लिए ट्रेन में बैठकर सबसे पहले उसने उसकी खिड़की से बाहर झाँका। सागर अपने गाँव और वहाँ की हर चीज़ को बहुत ही बेचैनी भरे दिल में एक बार फिर सँजोना चाह रहा था, इस बार सागर अपने दोस्तों, पीछे छूट गए रिश्तों और अपनी पसंदीदा जगहों को फिर से मिला और जब वह 10 दिन बाद वापस आने लगा तो एक छोटे से सवाल का सामना उसने किया जो उसकी 3 साल की भतीजी ने उससे पूछा था कि कल नहीं जा सकता क्या तू?
              
अपनों के साथ रहकर वहाँ से उतनी ही आसानी से लौट आना, जितना मुश्किल यह वाक्य पढ़ने या सुनने में लगता है उससे कई ज्यादा मुश्किल भरा यह हकीक़त में हो जाता है। सागर जब फिर से दिल्ली के भीड़ भरे माहौल में पहुँचा तो अपने सिर एक नई उपाधि का सेहरा बाँधे हुए था, जो उसकी आज़ादी का प्रतीक थी, यह सब कुछ उतना ही महत्त्वपूर्ण था लेकिन उससे भी अधिक कीमती था उसका प्रभाव जो सागर के अतीत की सारी बातों और यादों को एक ही प्रहार में सामने ले आया था और उसे इतिहास की सारी खिड़कियों की जालियों से निकाल बाहर कर दिया था। अब सागर आज़ादी के अनुभव को महसूस ही नहीं रहा था बल्कि उसे जीने भी लगा था और इसी क्रम में अचानक से दो यात्राओं का अनुभव भी उसे मिला जिसके बारे में उसे ख़याल भी नहीं आता अगर वह अतीत की खिड़की से बाहर नहीं आता। हीर अपने किस्सों और अनुभवों को संजो रही थी और यह सोच रही थी कि जब वह दिल्ली में सागर से मिले तो सारे किस्से, सारी बातें उसकी आँखें ही कर ले, उसे अपने से कुछ कहना न पड़े। ख़ैर अक्टूबर ने दोनों के रिश्तों को और मजबूत बनाया और इस बात की ख़बर भी दोनों तक पहुँचाई कि अगले दिन वह जा रहा है तो जिसका भी मन हो उसे विदा करने आ जाये। सागर अपने किस्सों और कहानियों से फुरसत पाकर अगली शाम अपनी छत पर बैठा इस अक्टूबर का आख़िरी चाँद देख रहा था और हीर अपने काम और ज़िन्दगी को परे रखकर अपने कमरे की बालकनी से आसमान में तारों को जोड़ कर 'चाँद' लिखने की कोशिश कर रही थी। अक्टूबर सागर और हीर के जीवन के स्टोर रुम में रखी अतीत की सारी परतों को उखाड़ ले गया और बदले में वर्तमान का कोरा कागज़ दोनों की वर्किंग टेबल पर रख कर चला गया।
                - कमलेश

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