आख़िरकार अगस्त को आज़ादी मिली

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गस्त की बारिशें सुकून और तड़प साथ लेकर आती हैं और उन्हीं के साथ आये ढेर सारे किस्सों और पुरानी यादों के संदूक में लिपटी तस्वीरें और लम्हें किसी भी नामामूली इंसान को झकझोर कर रख देने के लिए काफी होते हैं। ठीक इसी तरह कृति को विष्णु का कॉल आया जब वह अपनी ख़्वाहिशों की रंगत भरी दुनिया में ऐसी ही अगस्त की बारिश में भीगकर बैठी हुई कुछ यादें ताज़ा कर रही थी। विष्णु से मुलाक़ात तो केवल दो महीने पुरानी थी लेकिन उससे बात करते समय कृति को ऐसा लगता था कि वह न जाने कितने समय से उसे जानती है उससे बातें करती है और उसके लिए दुआएं करती रहती है। अपने घर की छत पर बने कमरे में कभी न समाने वाले ऐसे कितने ही ख़याल कृति के दिल में जन्मते और फिर कहीं टोह पाकर छुप जाते। कृति को 6 अगस्त की रात एक ईमेल मिला और उसे तुरत फुरत दिल्ली के लिए अपना साजो सामान समेट कर निकल जाना पड़ा, ताकि वह अपना आने वाला एक साल ढेर सारी दोस्तियों, कई बातों और नई मुश्किलों के साथ गुज़ार सके।
         
कृति दिल्ली आयी तो उसे यहाँ के आसमान में बादल दिखाई दिए जो शायद किसी शुभ संकेत का इंतज़ार कर रहे थे, यह देख उसने विष्णु को संदेश दिया कि वह दिल्ली में है और उसे जवाब मिला कि मैं जानता था तुम वापस आओगी। कृति अपनी ट्रेनिंग के चलते आठ दिन व्यस्त रही और विष्णु उसे हर रोज़ एक कविता और हर तीसरे दिन एक कॉल ड्रॉप करता रहा, 14 अगस्त की रात कृति ने इस क्रम में विष्णु से कहा कि कल आकर मुझसे मिल लो अगर तुम्हारे पास समय हो, नहीं तो रात को मैं बैंगलोर चली जाऊँगी। विष्णु ने 15 अगस्त को अपनी आज़ादी कृति के साथ हमेशा के लिए अपना एक अनोखा लेकिन ख़ूबसूरत बंधन बना कर मनाई, यह किसी के भी द्वारा स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने का सबसे नया तरीका था। उस दिन विष्णु ने दो घंटे एक पार्क में कृति के साथ और दो घंटे एक हॉल में कृति के बिना बिताए, यह एक बंधन के होने और न होने की दुनिया भर होकर रह गया। दोनों ने साथ खाना खाया और फिर विष्णु ने कृति को, नहीं कृति ने उसको गले लगाकर उससे विदा ली ताकि वह बिना अधूरे सपने लेकर बैंगलोर जा सके। विष्णु कुछ समय अपनी कुछ बैठकों और मुलाक़ातों में व्यस्त रहा और उसने चार दिन बाद कृति को याद किया, यह याद करने के लिए कि एक बंधन ऐसा भी है जिससे उसे आज़ादी मिल जाया करती है। इन चार दिनों में विष्णु बहुत कुछ कर चुका था और उतना ही काम किये या न किये बग़ैर ही कृति ने भी बराबर थकान को महसूस किया था। अगस्त में दिल्ली कुछ दिन सूखी तो कुछ दिन पानी से तरबतर हो अपने होने में अपना न होना ढूँढ रही थी और विष्णु और कृति अगस्त महीने को अपने हाथों में ऐसे थाम कर बैठे हुए थे जैसे किसी बच्चे ने खिलौना पकड़ा हुआ हो। लेकिन वक़्त ने एक दिन दोनों को यह बताने के लिए मुलाक़ात की, कि अगर इंसान हर पल को जीना छोड़कर महसूसने की कोशिश करेगा तो वक़्त के पुर्ज़े बिखर जाएंगे और लम्हा हाथों से फिसल जाएगा। इतना सुनते ही कृति और विष्णु ने एक ही साथ एक दूसरे को याद किया और अपने हाथों की अँगुलियों में बंधे अगस्त और उसके समूचे समय को आज़ादी दे दी। 
                                                         - कमलेश 

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