वक़्त की कारस्तानियाँ और प्रेम का दीया



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        नवरी का पहला दिन वसुंधरा के लिए कई अनमोल तोहफे और अनगिनत यादें सहेजने का अवसर लेकर आया था, जितनी ख़ुश और खुली हुई वह आज दिख रही थी उतनी बहुत ही कम मौकों पर दिखाई पड़ती थी। वसुंधरा अपने काम से फुरसत पाकर इस समय कच्छ में अपने कुछ साथियों के साथ उसको जानने की प्रक्रिया में लगी हुई थी, वसुंधरा ने साल 2019 के पहले दिन में कुछ लोगों से इस तरह मुलाक़ात और बातें की जैसे गए साल में उसने कभी उन लोगों को देखा ही नहीं। अपनी खुशियों और आज़ादी को जीते हुए उसे एक पल को हिम का ख़याल आया और उसने आज उसे कॉल करने की बजाय संदेश भेजने के लिए अपना फोन देखा और तब वह अपने फोन में प्राप्त संदेश को पढ़कर कुछ पल के लिए उस लम्हें में ही ठहर गई शायद उसे पूर्ण रुप से आत्मसात करने के लिए। हिम ने उसके लिए एक छोटा सा संदेश छोड़ा था नए साल की शुभकामनाओं के साथ जिसमें उसकी भावनाएं पढ़ना उतना ही आसान था जितना कि पहली के बच्चे का हिंदी वर्णमाला के अक्षरों को पहचानना। वसुंधरा ने बिना कोई भाव ज़ाहिर किये उस लेख को जाने कितने दिनों तक अपने भीतर ज़िंदा रखा ताकि उसकी ऊष्मा बरकरार रहे। कच्छ से फिर लौटकर उसने अपने कामों की सुध ली जिसमें उसने ख़ुद को हर दिन निखरते हुए पाया, उसने हिम से वो सारी बातें की जिसे करने की उसे उस वक़्त ज़रूरत महसूस हो रही थी और यही ज़रूरत हज़ारों किलोमीटर दूर बैठे हिम को भी लगी कि वह अपने जज़्बात और बातें वसुंधरा से ज़ाहिर करे।
     
कई बार केवल ख़ुद को किसी के सामने ज़ाहिर कर देना ही हमारी कितनी ही दिक्कतों का हल निकाल दिया करता है, एक ऐसा शख़्स जो हमें बिन कुछ कहे बस सुन ले और सब कुछ सुनकर सिर्फ एक बार जी भरकर हमें यह महसूस कर लेने दे कि उस लम्हें में भी हम हमारे वज़ूद को उतना ही साफ और सहज देख सकते हैं जितना की वह हमारी ख़ुशी के पलों में होता है। इस महीने ने जितनी उलझने और सवाल हिम और वसुंधरा के सामने रखे थे उन दोनों के वक़्त ने उनको इतना वक़्त तो दे ही दिया था कि वह किसी ऐसे ही शख़्स को खोज कर उस तक अपनी भावनाओं का ज़िक्र पहुँचा सकें। जितनी बार हिम ने ख़ुद को अकेला पाया उसकी ज़िन्दगी में उसे उसके पीछे कोई न कोई खड़ा हुआ ज़रूर मिला और हर बार पीछे खड़े उस शख़्स ने उसे ज़रूरत के मुताबिक प्यार, दुलार और समय दिया। इन सारे पलों की ख़बर वसुंधरा को उतनी ही रफ़्तार और सहजता से मिलती रही जितनी तेजी से वे घटित होकर अतीत बनते जा रहे थे। वसुंधरा अपने कामों की फ़ेहरिस्त को जितनी तेजी से छोटा कर रही थी ठीक इसके उलट हिम के लिए फ़ेहरिस्त लंबी होती जा रही थी। काम, समय की व्यस्तता और लोगों के साथ हुई मुलाक़ातें और उनके साथ की बातें यह सब अब हिम के दिलो दिमाग पर छाया हुआ था, और इसके चलते वह कई बार एक जगह ठहरा तो कभी ख़ुद को ख़यालों के जंगल में भटकते हुए पाया। जनवरी के 31 दिन हिम और वसुंधरा की बातचीत, लम्हों की उटपटांग हरकतों और नए लोगों से दोस्तियों में बीत जाते लेकिन आख़िर के दो दिनों में दोनों ने अपनी ज़िन्दगियों से मुलाक़ात की और सारी दुनिया के बेतरतीब ख़यालों, उलझनों, नासमझ हवाओं और खुराफ़ाती वक़्त की करतूतों को अपने वर्तमान में उपजती ऊर्जा से खुशियों और सहजता से भरा प्रेम का दीपक जला सारा समां रंगीन बना दिया।
                                                                                                  - कमलेश

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