फिर...बारिशें थम गईं

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क रोज़ सूरज वैसे ही उगा जैसे हर रोज़ उगता है लेकिन आज सूरज यह नहीं जानता था कि आज कोई उसकी किरणों की गर्मी को ठंडा कर देगा, कोई है दुनिया में जो उसकी तरफ उतनी शांत नज़र से देखेगा कि उसकी ऊष्मा ख़तरे में भी आ सकती है। प्रेम ने आज सुबह उठकर अपने व्हाट्सअप से पिछले महीने शुरु हुई एक कहानी को आगे बढ़ाने के लिए अपनी नई दोस्त को अपना पिछले दिनों लिखा एक छोटा सा लेख पढ़ने के लिए भेज दिया और सूरज की तरफ अपनी नज़रें उठाई। ख़ुशी ने दूसरे दिन शाम को लेख पढ़कर अपनी प्रेम और खुशियों से सरोबार प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे दोनों ही भावविभोर हो गए। ख़ुशी की प्रतिक्रिया के पीछे छुपे कारणों और उम्मीदों को प्रेम ने ख़ुशी की न बोली गई बातों से सुना और हर रोज़ उसे एक कविता सुबह की शुभकामनाओं के साथ भेजने का निर्णय ले लिया। ख़ुशी को यह पहल शायद उतनी ही ज़रूरी लगी जितना कि साँस लेना, वह प्रेम से उसके लेखन के बारे में बातें करने को हमेशा उत्सुक दिखी और दोनों आये दिन अपने अनुभवों को एक दुसरे के साथ साझा करते रहे। इसी सिलसिले में एक दिन प्रेम ने अपनी एक कहानी उसे भेजी जिसकी उसे उस वक़्त भेजने की ज़रूरत महसूस हुई और उस कहानी ने दोनों के रिश्ते को पेड़ की फुनगी से उतारकर उसकी जड़ों में पहुंचा दिया। वह कहानी उतनी ही आसानी से ख़ुशी की बातों को अपने शब्दों में कहती हुई उसके अन्दर घर कर के बैठ गयी जितनी आसानी से वह कागज़ों पर उतरी थी।  
                  
उस रोज़ उस कहानी ने इस बात की नींव रखी कि किस तरह प्रेम और ख़ुशी अपनी दोस्ती को आगे ले जाने वाले हैं, वह कहानी इस बात का सबूत भी थी कि दोस्ती क्या होनी चाहिए और कैसे होनी चाहिए हालाँकि यह बहस सदियों से चल रही है और सदियों तक चलती भी रहेगी लेकिन इस बहस से अनजान यह कहानी ख़ुशी को प्रेम को क़रीब से देखने का ज़रिया मालूम हुई। रोज़ की कविताएँ और फ़ोन पर होती बातचीत का सिलसिला तो थमा नहीं लेकिन यही उनकी पहली मुलाक़ात का कारण बन गया। मॉडल टाउन में रहने वाली दोस्त के घर जब दोनों मिले तो सारा माहौल उनकी मुलाक़ात के रंग में डूब गया। कुछ दिन दिल्ली की मेट्रो और सड़कें प्रेम और ख़ुशी के साथ की गवाह बनी और उन्होंने यह जाना कि किस तरह ख़ुशी को किसी भी ख़ुशी का कारण नहीं जानना और प्रेम को हर पल में छुपी हुई ख़ुशी ढूँढना अच्छा लगता है। ख़ुशी ने दो रातें और तीन दिन के लम्हें समेट कर अपनी कहानी में रखे ही थे कि वह 8 दिन के अंतराल में फिर दिल्ली आ जाने के ख़्वाहिश के साथ प्रेम को एक मेट्रो स्टेशन पर छोड़ कर चली गई। ख़ुशी दूसरी बार प्रेम से मिलने दिल्ली आई तो इस बार बारिशें अपने साथ लेकर आई और जितने दिन रही बारिशों को साथ लेकर घूमती रही। प्रेम को बारिश हमेशा से पसंद थी तो उसे ख़ुशी में वही पसंद नज़र आई, जब तक ख़ुशी प्रेम के साथ रहती थी तब बारिश रुक जाया करती और जैसे ही उससे दूर होती बारिश आ धमकती, तो ख़ुशी को बारिश में प्रेम की आरज़ू और अपनापन दिखाई दे गया। बारिशों के अर्थ समझना जारी ही था कि एक शाम ख़ुशी का एक संदेश प्रेम के फोन में उतरा यह कहने को कि अगले दिन ख़ुशी उदयपुर का सूरज देखेगी और फिर प्रेम ने उसे यात्रा के लिए शुभकामनाएं दी। इस घटना के अगले दिन से दिल्ली में बारिशों का आना जाना थम गया। 
                                                                         - कमलेश 
                                                                               

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