और दिसम्बर वसंत हो गया…
Source - Bbc.com |
गुलज़ार अपनी परीक्षाओं
से समय निकाल कर हाल ही में एक संस्था से जुड़ा था जहाँ वह अपनी ट्रेनिंग की प्रक्रिया
से गुज़र रहा था। गुलज़ार को अपने प्रशिक्षण के अंतिम दिन अपने मोबाइल फोन पर एक अपठित
संदेश दिखाई पड़ा जो उसे तक़रीबन ४ घंटे पहले भेजा गया था। ख़ुशबू ने उसे यह कहने के लिए
संदेश भेजा था कि वह कल 2 बजे के बाद अपने कामों से फ़ुरसत पा
लेगी,
जिसका
सीधा सा मतलब यह था कि कल गुलज़ार और ख़ुशबू चार महीनों के इंतज़ार के बाद आख़िरकार मिल
जायेंगे। गुलज़ार अपने आने वाले पर्चे की बची कुची तैयारियों को निपटाने में जुट गया
ताकि इम्तिहान से जुड़े ख़याल उसकी और ख़ुशबू की मुलाक़ात में दखल-अंदाज़ी
न करने पाए। अगले दिन सारे इंतज़ार और बेचैनियों के साथ गुलज़ार ख़ुशबू से मिला और दिल
में दबे सारे अरमानों और किस्सों को उससे साझा किया, ख़ुशबू
भी शायद इसी पल के लिए ख़ुद को थामे हुए थी एक बार जो उसने बोलना शुरु किया तो फिर सारी
बातें करके ही दम लिया। चार महीने बाद की इस मुलाक़ात को यादगार और हसीं बनाने का कोई
भी मौका न तो ख़ुशबू छोड़ने वाली थी और न ही गुलज़ार का ऐसा कोई इरादा था। वे दोनों उन
सारी जगहों और लोगों से मिले जो उनकी पहली मुलाक़ात का कारण बने थे। शाम तक ख़ुशबू और
गुलज़ार साथ ही रहे,
एक
तरफ ख़ुशबू गुलज़ार को देख लेने भर से तृप्त हो चुकी थी तो दूसरी ओर गुलज़ार की यह ख़्वाहिश
थी ख़ुशबू केवल एक दिन और ठहर जाए, लेकिन अपनी
ख्वाहिशों को ज़ाहिर किये बगैर ही ख़ुशबू गुलज़ार की ख्वाहिशों का किस्सा अधूरा छोड़कर
वापस लौट गई लेकिन इस बार जल्द से जल्द फिर मिलने के वादे के साथ।
लौटते समय
ख़ुशबू ने गुलज़ार के चेहरे पर बिखरी उदासी और उसकी बातों में पसरी हुई ख़ामोशी को महसूस
किया जिसे अपने अन्दर दबाए हुए उसने ब्रम्हांड में अपनी ख़्वाहिश को ज़ाहिर कर दिया
और फिर वह कामों में फिर से तल्लीन हो गई ताकि जो कुछ लिखा हो वही हो, जो कुछ वह
मन से चाहती है उसके लिए तो फिर हर क़तरा साथ है ही। अपने भागदौड़ भरे शहर से कुछ दिन
दूर चले जाने पर ख़ुशबू को ख़ुद के साथ बिताने के लिए ढेर सारा वक़्त मिला और उसने काफी
सारी अधूरी कहानियों के तारों को जोड़कर ख़ुद में उनको ज़िन्दा कर लिया। गुलज़ार इस बीच
अपने पर्चे ख़त्म करके साथ चल रहे कामों में जुट गया था क्योंकि उसे कुछ ही दिनों में
सारा काम समेट कर घर जाना था। गुलज़ार ने इस दफ़ा अपने पिता और बाकि लोगों से अपनी ज़िन्दगी
से जुड़ी बातें करने की हिम्मत की और उन्हें यह बतलाने में कामयाब हुआ कि उसके दिल में
क्या चल रहा है। घर पर कुछ दिन बिताकर गुलज़ार अपने एक अज़ीज़ दोस्त से मिलने गया जिससे
मिले हुए उसे लगभग ७ महीनों का वक़्त बीत चुका था, अपनी उस मुलाक़ात
के बाद एक प्रोग्राम का हिस्सा बनने के लिए वह अहमदाबाद पहुँचा, जहाँ पहुँच
कर उसकी सारी चिंताओं, दुविधाओं, अनमनेपन का
हल मिलने वाला था। क्योंकि वहाँ गुलज़ार की ज़िन्दगी की वो कड़ियाँ जुड़ी हुई थी जो शायद
कहीं और नहीं थीं। गुलज़ार का पहला दिन अहमदाबाद में इतनी ख़ुशी और प्रेम से सरोबार रहा
कि उसे कुछ भी और सोचने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, और रही कसर
ख़ुशबू ने अगले दिन अहमदाबाद आकर पूरी कर दी। ख़ुशबू का अहमदाबाद आना और गुलज़ार का दिन के पहले पहर सुबह की ठंडी हवाओं के संग उसे जी भरकर प्रेम करना, गुलज़ार और
ख़ुशबू के अब तक के सारे साथ बिताये पलों पर भारी पड़ता हुआ सा मालूम हुआ। हालाँकि इस
बार ख़ुशबू अपने ढेर सारे दोस्तों के साथ हो रही मुलाकातों और उनसे चल रही बातों के
चलते गुलज़ार को उतना वक़्त नहीं दे पा रही है; ऐसा ख़ुशबू ने महसूस किया लेकिन गुलज़ार
यह सोच रहा था कि ख़ुशबू को उसके सारे दोस्तों से उसे ख़ुशबू को मिलने देना चाहिए वह
तो वैसे भी उसके साथ कुछ न कुछ पलों को जी ही लेगा। अहमदाबाद में अपने इस साल को इतने
खुबसूरत मोड़ पर ख़त्म होता देख जितनी ख़ुशी गुलज़ार को हो रही थी उतनी ही ख़ुशी ख़ुशबू को
वहाँ उस माहौल में रहने से मिलती रही। इसी तरह अपने समय को एक दूजे से न बांटकर भी
बाँटते हुए और हर लम्हें को उतनी ही शिद्दत जीकर ख़ुशबू और गुलज़ार ने दिसंबर को भी वसंत
जितना खुबसूरत बना दिया। - कमलेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें