आरक्षण - एक दानव


OBC 27%, SC 15%, ST 7.5% यह ऐसे आंकड़े हैं जो हर किसी के दिमाग पर अंकित है, इनका सामना सभी को करना पड़ता है | कुछ दशकों पूर्व ये सारे आंकड़े वाकई ज़रूरी थे लेकिन आज के युग में इनका होना प्रतिभावान सामान्य और पिछड़े वर्ग के लिए दानव के सामान प्रतीत होता है जो इनका रास्ता रोके खड़ा है | हमारे देश के संविधान निर्माताओं की मुख्य भूमिका में रहे भीमराव अंबेडकर ने उस समय की परिस्थितियों ,मुश्किलों का अवलोकन करते हुए छुआछुत और जातिप्रथा से तंग आकर इन्हें ख़त्म करने के लिए आरक्षण की इस प्रणाली को शुरू किया था ताकि इससे सबका विकास हो सके | लेकिन अब यह नीति देश के एक प्रतिभावान और सक्षम तबके को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है सिर्फ पिछड़ो को अवसर देने के नाम पर |
                              सवाल यह है कि शून्य और माइनस में अंक हासिल करने वाले छात्रों को अवसर के नाम पर दाखिला देकर आप इस देश को कहाँ ले जाना चाहते हैं ? प्रगति की ओर तो कतई नहीं , जो शख्स एशिया की सबसे कठिन परीक्षा में शून्य अंक लाता है उसे यह कहकर एडमिशन मिलता है कि उसे अवसर दिया जा रहा है जबकि वहीं उसी परीक्षा में १०० या १५० अंक प्राप्त करने वाले प्रतिभावान दिमाग को दरकिनार कर दिया जाता है | हकीक़त तो यह है इस प्रणाली के तहत सक्षम और प्रतिभावान तबके के अवसरों, अधिकारों का हनन किया जा रहा है, राष्ट्रपिता गाँधी या अम्बेडकर भी अगर इस दौर में मौजूद रहते तो इसका विरोध ही करते जिन्होंने इसे लागु करने में अपनी भूमिका अदा की थी | लेकिन सियासतदारों ने इसे ख़त्म करने की बजाय इसे अपने महत्वपूर्ण वोट बैंक का जरिया बना लिया है ताकि वे सरकार में आ सके जो कि इस देश के विकास से ज्यादा महत्वपूर्ण है उन लोगो के लिए जो बस अय्याशी के लिए राजनीती में आते हैं, यह राजनेता जिनमें से आधे खुद पूर्णरूप से शिक्षित नहीं है वे इस देश की दिशा तय कर रहे हैं बड़े शर्म की बात है, आरक्षण के नाम पर दिमागी तौर पर कमजोर या यूँ कहे की दिमागी तौर पर पैदल लोगो को विकास यात्रा में शामिल किया जा रहा है जो अभी तक अपनी किस्मत पर भरोसा करते आये हैं कि आरक्षित वर्ग से हैं कहीं न कहीं तो टिक ही जायेंगे मेहनत क्या करना तो इन लोगो से यह उम्मीद करना की ये देश की प्रगति कर सकते हैं ग़लत है |
                                               गौर करने वाली बात है कि हमारी सरकारें अमेरिका, इंग्लैंड और जापान जैसे कई देशों को यह कहकर ललकारती आई है कि "तुम्हारे यंहा हमारे ही देश के लोग कार्य कर रहे हैं वे अगर वापस आ जायें तो तुम्हारी तरक्की रुक जाएगी" बात तो शत प्रतिशत सही है लेकिन इसका कारण क्या है कि हमारे देश के लोग ही हमारे देश में रहना नहीं चाहते ? इसका उत्तर हर सरकार को पता है लेकिन इस हित में कदम कोई नहीं उठाना चाहता कि अगर इस प्रणाली से देश मुक्त हो जाये तो देश से बाहर जाने वाला प्रतिभाशाली और सक्षम दिमाग देश में ही रहकर इसके विकास में अपनी मुख्य भूमिका निभा सकेगा लेकिन इसकी वजह से सरकारों का वोट बैंक ख़त्म हो जायेगा जो कि उनके लिए हानिकारक है | किसी भी देश का विकास उसकी शिक्षा प्रणाली पर निर्भर होता है, जिस देश में आज भी ४० साल पुराने तौर तरीकों से शिक्षा दी जा रही हो उसका इतनी जल्दी विकास हो जायेगा यह स्वप्न देखना व्यर्थ है |
            एक तरफ NRI को विदेशों में प्रसिद्द करके उसका गौरवगान गाया जाता है और दूसरी ओर उसे यह कहकर बदनाम किया जाता है कि वो अपनी प्रतिभा को देश के लिए नहीं उपयोग कर रहे, अरे जिस देश में प्रतिभावान लोगों की जगह दिमागी तौर पर पैदल ( शून्य या माइनस अंक वाले ) लोगो को तरजीह दी जाती हो वहां का नागरिक और कर भी क्या सकता है क्योंकि उसे भी जीवित रहना है अपने परिवार का पोषण करना है | इस देश की शिक्षा प्रणाली ने उनके सुनहरे भविष्य को अँधेरे में यह कहकर धकेल दिया कि वे उनसे कमजोर लोगो को अवसर दे रहे हैं | इस आरक्षण नामक दानव ने लगभग सारे देश को निगल लिया है और विकास कि ओर इसे बढ़ने ही नहीं दे रहा | आज जब इस प्रणाली को ख़त्म करके ज़रुरतमंद लोगो की तरफ मोड़ने का प्रयास किया जा रहा है तो सभी को ग़लत लगता है, तुम SC या ST हो भले अमीर या ग़रीब कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन व्यवस्था के अभाव में जी रहे प्रतिभावान लोग जो कि सामान्य या पिछड़े वर्ग से हैं उनके बारे में कोई नहीं सोचता बस सभी को अपना फायदा दिखता है, और सरकारों को वोट बैंक |
                                      अगर कोई समाधान नहीं है तो एक समाधान अवश्य है वो यह कि भगवान, खुदा जो भी है वो इंसान को धरा पर भेजने से पूर्व एक प्रतियोगिता आयोजित करनी चाहिए जिसके परिणामों के आधार पर उन सारे तत्वों को GENERAL, OBC, SC या ST माता पिता आवंटित कर दिए जाएँ ताकि फिर किसी को कोई शिकायत ही नहीं रहे सभी कह सकें कि ये उनके कर्मो का ही फल है |
                                                                         मुश्किल प्रतीत होता है लेकिन हमें स्वीकारना ही होगा कि आज के युग में आरक्षण ने एक दानव का रूप ले लिया है जो सक्षम और प्रतिभाशाली लोगों को निगलता जा रहा है, और देश को गर्त में धकेल रहा है | अगर हम समय रहते इसका विरोध नहीं करेंगे तो शायद आने वाले युग में दिमागी तौर पर पैदल लोग ही राज करेंगे और प्रतिभावान प्रजाति विलुप्त हो जाएगी |

                                                                                                                               .....कमलेश.....
नोट - यह लेखक के निजी विचार हैं |  

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