सोने की एक चिड़िया रहती थी कहीं खो गई ......
औरत एक देवी बनकर रहती थी कहीं खो गई ।
नफरत भर गई है सब की रगों में यहाँ पर,
जुबाँ वो प्रेम को बोलती थी कहीं खो गई ।
जुबाँ वो प्रेम को बोलती थी कहीं खो गई ।
कोई किसी का दर्द नहीं पहचानता अब,
जटायु की आत्मा रहती थी कहीं खो गई ।
जटायु की आत्मा रहती थी कहीं खो गई ।
यमराज से दिखते हैं मुझे देश के नेता अब,
रामराज से दिशाएं गूंजती थी कहीं खो गई ।
रामराज से दिशाएं गूंजती थी कहीं खो गई ।
अब तो बैर हो गया है गरीबों से अमीरों का,
कृष्ण सुदामा की दोस्ती रहती थी कहीं खो गई ।
कृष्ण सुदामा की दोस्ती रहती थी कहीं खो गई ।
मात्र एक छलावा बना दिया है आज प्रेम को,
राधा श्याम की मोहब्बत रहती थी कहीं खो गई ।
राधा श्याम की मोहब्बत रहती थी कहीं खो गई ।
काले कारनामों से वतन पर मेरे दाग लगा दिए,
विश्व गुरु जैसी इक छवि होती थी कहीं खो गई ।
विश्व गुरु जैसी इक छवि होती थी कहीं खो गई ।
.....कमलेश.....
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