मुझे पसंद नहीं
मैं तुझे चाँद नही कहना चाहता
ना ही तेरी सूरत को चांदनी
क्यूँ की चाँद को दुनिया देखती है,
लेकिन तुझे मेरी निगाहों के सिवा
कोई और इस तरहा देखे
मुझे पसंद नही ।
ना ही तेरी सूरत को चांदनी
क्यूँ की चाँद को दुनिया देखती है,
लेकिन तुझे मेरी निगाहों के सिवा
कोई और इस तरहा देखे
मुझे पसंद नही ।
मैं नहीं चाहता की हम दोनों
खुली वादियों की सैर करें,
हवाएं किसी को नही बख्शती
वो किसी को भी कभी भी छू लेती है,
लेकिन तुझे मेरे सिवा कोई छुए
मुझे पसंद नही ।
मैं नहीं चाहता की तू कभी
सोलह श्रंगार करके सामने आये,
क्यूँकी तुझ पर फ़िदा होकर
हर कोई तुझे चाहने लगेगा,
लेकिन मेरे सिवा कोई तुझे चाहे
मुझे पसंद नही ।
मैं नहीं चाहता के हम भीगें
सावन की पहली बारिश में,
भीग जाने से पानी तेरी जुल्फों में
अपना अक्स खोकर उतर जायेगा,
लेकिन मेरे सिवा तुझमें कोई खो जाये
मुझे पसंद नही ।
.....कमलेश.....
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