इतिहास, दोहराव और बदलाव

प्रेम में चीज़ें स्थिर होने लगती है लेकिन अगर उन्हें बदलने की जुगत भिड़ाई जाए तो वे टूट जाती है, प्रेम को बदलाव पसंद है इसके बावजूद भी प्रेम हमें स्थिरता प्रदान करता है । प्रेम से उपजे सारे सिद्धांत पुख़्ता करते हैं अस्थिरता को, हालांकि अस्थिरता और बदलाव का प्रेम से कोई नाता नहीं होता । बदलाव की प्रक्रिया शाश्वत है उसे कोई रोक नहीं पाएगा क्योंकि वह सबसे ताकतवर है, जब किसी बदलाव का अंदेशा ज़िन्दगी में होता है तो इंसान को इस बात का भय सताता है कि उसकी ज़िन्दगी बदल जाएगी । ज़िन्दगी का अपने आप बदल जाना और बदलाव की वजह से बदलने में ज़रा भी समानता नहीं होती, अपने आप बदलती ज़िन्दगी का हमें एहसास नहीं होता और बदलाव जब आता है तब हम उसके आते हुए चेहरे को देखते हैं । आज तक कोई भी बदलाव की पीठ नहीं देख पाया या शायद वह शॉल ओढ़ कर चलता रहता है, लेकिन इसमें भी एक बात है जिसका होना तय होता है । वह यह कि बदलाव के होने से इतिहास के पन्नों का संपादन हो जाता है लेकिन इतिहास का बदलाव के साथ कोई मनमुटाव फ़िर भी नहीं होता । बदलाव इतनी दफा इतिहास में एडिटिंग कर चुका है कि अब इतिहास को इसकी आदत हो चली है, इतिहास कभी भी खुद को दोहराने के फेर में नहीं रहता क्योंकि वो मस्तमौला टाइप का है, उसे किसी से कोई सरोकार नहीं । यह तो इंसान ही है जो उसके पन्नों को फ़िर से कॉपी करने की कोशिश में लगा हुआ है, अगर कोई चीज़ ख़ुद को दोहराती है तो वह है ख़ुद चीज़ें । इतिहास ख़ुद को दोहरा नहीं सकता क्योंकि वह अपाहिज है, और बदलाव को दोहराव से कोई लगाव नहीं क्योंकि दोनों न कभी एक दूजे से मिले हैं न नाम ही सुना है। कुछ चीज़ें इस दुनिया की हमेशा यही चाहती हैं कि वो ख़ुद को कभी ना दोहराएं लेकिन इतिहास, बदलाव और दोहराव के चक्कर में पड़कर, वे भूल जाती है कि बदलाव सबसे ताकतवर है ।
                                               -- कमलेश

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