किसी खोए हुए घर का
किसी खोए हुए घर का पता ढूंढ रहा है,
प्रेम का ख़त कबसे ज़िन्दगी ढूंढ रहा है ।
मेरी पगतली में चुभा हुआ एक कांटा,
दिल तक आने का मौका ढूंढ रहा है ।
मेरे सिर पर बना था एक घाव कल,
जो आज अपना ही ख़ून ढूंढ रहा है ।
दरवाज़े पर लटका है खज़ाना कब से,
वो चोर फ़िर भी तिज़ोरी ढूंढ रहा है ।
स्टडी टेबल पे पड़ा हुआ है मेरा खाना,
रह रह कर वो मेरी भूख ढूंढ रहा है ।
मैंने छुपने कोशिश नहीं की कभी डर के,
बावजूद इसके भी मुझे वक़्त ढूंढ रहा है ।
- कमलेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें