अस्तित्व का रहस्य

किसी भी जीव का अस्तित्व
बग़ैर आत्मा के संभव नहीं,
और बिना जीव के अस्तित्व के
निरर्थक होता है आत्मा का होना ।

चेहरे के नूर को देखने पर तुम्हारे
अद्वैत दर्शन का मूलमंत्र उपज पाया,
जिसको शंकराचार्य ने सराहा
और विवेकानंद ने प्रचारित किया ।

प्रकृति के कारणों को खोजते हुए
थेल्स ने देख ली थी तुम्हारी आंखें,
तब जाकर उसने जाना और कहा
कि पानी से विश्व का सृजन हुआ ।

तुम अनभिज्ञ थी जब गुस्से में
तो तुम्हारी आग उगलती नज़रें
सूरज के निर्माण में सहायक बनी,
और कई सालों बाद हेरक्लिटस ने
आग को प्रथम तत्व घोषित किया ।

लटों में तुम्हारे बालों की उलझकर
किसी रोज़ जाना जा सका शाम का रहस्य,
अनंतता को देखकर  तुम्हारी मुस्कान की
अनेग्जीमेंडर को यह एहसास हुआ,
कि वह भी सृष्टि का कारण जानता है ।

सारे सिद्धांत जो आज की तारीख़ तक
प्रतिपादित किए हैं वक़्त ने,
बहस अभी भी जारी है उनमें ;
कि तुम्हारी आंखें या मुस्कान,
कि तुम्हारी नज़रें या जुल्फ़ें,
आख़िर इस ब्रम्हांड का सृजन हुआ तो कैसे ?

सब मगन हो चुके हैं इस बहस में,
कोई जान नहीं पाया अभी तक
इस संसार के सृजन का रहस्य ;
मैं हूं खुशकिस्मत शायद
जो जान सका तुम्हारे होने को ।

दुनिया भागी जा रही है
आंखें मूंदे मोक्ष की चाह में,
निहारे जा रहा हूं मैं बस
अपलक सुबह-ओ-शाम तुम्हें ।
                                -- कमलेश

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