एक सैनिक की जुबानी ...
Source-Oneindia |
वो रोज़ हम पर पत्थर फेकते है ,
हम उन पर गोलियां नहीं दाग़ते
बल्कि उनको महफूज़ रखने की कोशिश करते है ।
जब कुदरत ने अपना कहर बरपाया
हमने जान पर खेल कर उनको बचाया ,
उस वक़्त ना मज़हब देखा ना ज़ात
सोचा तो बस देश और इंसानियत के बारे में ।
जब कभी आतंकीयो ने उनको सताया
हमारे दोस्तो की कुर्बानीयों ने बचाया ।
हम भी इंसान है इन सब की तरह
दिल हमारा भी तो धड़कता है वैसे ही ,
हमने पहली बार अपनी इज्ज़त की खातिर
इनको सबक क्या सिखा दिया,
हंगामा खड़ा कर दिया नैतिकता के इन् ठेकेदारों ने
तब क्यों वो पट्टी बांध लेते हैं ?
जब वो हम पर पत्थर बरसाते है ,
कौन प्यारा है ?हम पूछते है
ये पत्थरबाज़ या जाँबाज़ सैनिक !
.....कमलेश.....
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