जिंदगी : इक तिलिस्म





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इक आसान सा खेल है  जिन्दगी
नासमझ लोग ये जाने क्यूँ
उलझकर इस फन में यह कहते है
जिन्दगी इक अनसुलझा तिलिस्म है।

मखमली सी राहें कुदरत ने बनाई है
हर इंसान को एक हुनर बख्शा है
तराश नही पाता ये इंसान खुद को
पत्थर से खुदा को तराशने चला है
रब ने कभी अलग ना समझा इसे
पर खुदा को इसने बाँट लिया है
इंसानियत को भुलाकर यह कहते है
जिन्दगी इक अनसुलझा तिलिस्म है।

उगता सुरज एक नई उम्मीद लाता है
डूबता तारा एक ख्वाहिश छोड़ जाता है
हिम्मत नही है खुद को सुन पाने की
इस डर से इंसान डूबता चला जाता है
खुद पर यकीन करना फितरत नही किसी की
दूसरो पर बेतहाशा विश्वास किया जाता है
खुद को औरों में खोकर यह कहते है
जिन्दगी इक अनसुलझा तिलिस्म है ।

                                  .....कमलेश.....

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