देखता हूँ जब तस्वीर को तेरी


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देखता हूँ जब तस्वीर को तेरी
सारे लम्हे सामने आ जाते है
आ-जाता है जब तेरा काॅल (call)
मानो के सितार बज उठते है ।
रूक जाता हूँ मैं आजकल
ना जाने क्यूं चलते हुए
ऐसा लगता है जैसे मुझे
मुड़कर तुने आवाज दी है ।
निकला जब अपने सफर पे
मेरी तुझसे मुलाकात हो गई
दिल ने तब कहा मुझसे
के कोई हसरत ही ना रही ।
तेरी गुलाबी आँखो को फिर से
देखने का दिल करता है
नींद से अक्सर जाग जाता हूँ
तेरा सपना जब आता है ।
आज फिर मेरे हाथों ने रोका
के तेरी इबादत, मैं ना करूँ
जिद करता है फिर कमलेश
के नशा तो अब वो ही करूँ
जिदंगी भर जो उतर ना सके
के तुझसी मोहब्बत हो ना सके ।


                               .....कमलेश.....


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