पाँच कवितायें

1. हिंदी -

वर्तमान समय में
मातृभाषा
हिंदी के हालात को देखते हुए,
ऐसा लगता है कि
हमारी भाषा को
अब एक
अदरक वाली,
कड़क
चाय की ज़रूरत है ।
                         

2. तीन, दो, पाँच -

पिछले कुछ समय से,
ऐसा लगता है कि
ज़माना और मैं,
तीन, दो, पाँच खेल रहे हैं ।

हर बार
मैं अपना सेट पूरा करता हूँ,
फिर भी
कुछ ना कुछ उधारी,
ज़माने की बाकी रह ही जाती है ।
                                

3. गुनाह -

गुनहगार
वे लोग नहीं है
जो किसी को धोखा देते हैं,
उन्हें
पिला दी गई होगी,
सिर्फ एक
बेस्वाद चाय ।
                  

4. तुम -

कुछ दिन दूरी पर
रह जाने से तेरे,
हो गया है फिर
इश्क मुझे,
लेकिन इस बार
चाय से ।

परिभाषा लेकिन अब भी
वही है
इश्क की
''तुम''।
                   

5. दुनिया -

सोने के बाद
जागने से पहले
दुनिया मेरी,
तुम होती हो केवल ।

अकस्मात मधुर स्वर तुम्हारे प्रेम का
भेद कर मेरे स्वप्न को,
खींच लेता है
फिर से हकीकत में,
अकिंचन होकर भी जहाँ
तृप्त हो जाता हूँ मैं ।

                   .....कमलेश.....

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