रात की खूबसूरती
रात की खूबसूरती में कुछ खोटा लगता है,
तारों की आँख से कुछ टूटा लगता है ।
सूरज उगता तो है तेरी यादें साथ लेकर,
मगर शाम को ढलने से मुकरने लगता है ।
होंठो पर ग़ज़लें तो है गुनगुनाने को मगर,
बिन तेरे मतला ही मुझे अधूरा लगता है ।
बीती यादें और खुशियाँ मुँह चिढ़ाती है,
तन्हाइयों का मेरे शहर जब मेला लगता है ।
तड़प रही है बाहर आने के लिए अब नज़्में,
लेकिन कलम और दिल का झगड़ा लगता है ।
जुदा हो गया मुझसे तेरे साथ गुज़रा वक्त भी,
तेरे साथ ही फिर वापस आएगा लगता है ।
.....कमलेश.....
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