पूछना

तुम्हारा यह सवाल करना कि
तुम कवितायेँ कैसे लिखते हो ?
उतना ही स्वाभाविक है जितना कि
तुम्हारा,
एक गोलगप्पे वाले से पूछ लेना कि
कैसे वो इतने अच्छे गोलगप्पे बनाता है ?

इस सवाल का जवाब भी,
उतना ही सरल है जितना कि
तुम्हारा इस सवाल को पूछना कि
कवितायेँ कैसे लिखते हो ?

 जब तुम
इन सवालों की सरलता में उलझकर,
फिर सवाल कर बैठते हो कि
क्या कवि हमेशा सच कहता है ?

यह पूछना
उतना ही तर्कहीन है जितना कि
सुबह सुबह,
दूधवाले से यह प्रश्न करना
क्या दूध में पानी मिलाया गया है ?

दूध का दूध और पानी का पानी सोचते समय,
तुम फिर पूछ जाते हो कि
क्या कविता सोचकर लिखी जाती है ?
यह संशय
उतना ही अर्थहीन साबित होता है जितना कि
एक प्रेमी का,
प्रेमिका को चूमने से ठीक पहले,
इस बात को सोचना कि
चुम्बन कैसे होता है ?

                      .....कमलेश.....

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